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    शरीयत में दखल देने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुबूल नहीं : आला हजरत

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Tue, 22 Aug 2017 05:47 PM (IST)

    प्रबंधक खानकाह-ए-नियाजिया शब्बू मियां नियाजी ने कहा कि मजहबी मामलत में दुनियावी दखलदांजी अच्छी नहीं रहती। दुनियावी कानून में सुधार होते रहते हैं पर शरीयत में तब्दीली मुमकिन नहीं।

    शरीयत में दखल देने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुबूल नहीं : आला हजरत

    बरेली (जेएनएन)। देश की शीर्ष अदालत के तीन तलाक के फैसले पर छह महीने तक रोक पर बरेलवी मसलक के उलमा ने नाखुशी जताई। शरीयत में दखल देने वाले इस फैसले को कुबूल नहीं किया जा सकता।

    आला हजरत एवं सज्जादा नशीन दरगाह आला हजरत के चाचा, मौलाना तस्लीम रजा खां, नबीरे ने कहा कि हम और तमाम मामलों में देश के कानून को मानते हैं और मानते रहेंगे, लेकिन शरीयत के खिलाफ कोई फैसला हमें मंजूर नहीं होगा। तीन तलाक को एक बार में तीन ही माना जाएगा। अब चाहे सरकार कानून बनाकर इस पर रोक ही क्यों ना लगा दे।  इस मामले में उनका तर्क है कि तलाक मजबही मामला है। उसमें अदालत दखल नहीं दे सकती। मुसलमान शरीयत को मानते हैं, उसके हिसाब से जीते हैं। 

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    मुफ़्ती खुर्शीद आलम, शहर इमाम बरेली, मुसलमान ने कहा कि शरीयत का कानून मानते हैं। कुरान और हदीस के मुताबिक जो भी फैसला होगा। उसी को माना जाएगा। बाकी कोई भी एडी चोटी का जोर लगा ले उसका फैसला नहीं माना जाएगा। 

    मुफ्ती सैयद मोहम्मद कफील हाश्मी अध्यक्ष फतवा विभाग मदरसा मंजरे इस्लाम, दरगाह आला हजरत

    ने कहा कि मुसलमान शरियत को सामने रखकर जिंदगी गुजारते हैं। तीन तलाक भी शरीयत का हिस्सा है, इसे बदला नहीं जा सकता। शरीयत तीन तलाक को जायज करार देती है। मुसलमान शरीयत के फैसले पर अडिग रहेंगे। अब चाहे उसे कानूनन में हराम या नाजायज करार दे दिया जाए।

    प्रबंधक खानकाह-ए-नियाजिया, शब्बू मियां नियाजी ने कहा कि मजहबी मामलत में दुनियावी दखलदांजी अच्छी नहीं रहती। दुनियावी कानून में सुधार होते रहते हैं पर शरीयत में तब्दीली मुमकिन नहीं। इसे छेडऩे से मामला और पेचीदा हो जाता है। फैसले की कॉपी आने पर ही पूरा मामला समझा जाएगा। 

    महासचिव जमात रजा ए मुस्तफा, मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि अव्वल तो मजहब के मामलों में किसी भी संस्था को दखल नहीं देना चाहिए, क्योंकि संवैधानिक तौर से अल्पसंख्यकों के अपने अकीदे की आजादी है। फिर भी कोर्ट ने जो फैसला दिया है वो संसद के लिए हिदायत है। संसद के नुमाइंदे तीन तलाक पर जो भी कानून बनाएं वो शरीयत की रोशनी में बने। मुस्लिमों के उसूल और कानून का ख्याल रखा जाए। छह माह की रोक किस वजह से लगी है। फैसले की कॉपी मिलने के बाद इसका निष्कर्ष निकाला जाएगा। 

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    आला हजरत खानदान के लोग इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद विचार कर रहे हैं। उन्होंने मीटिंग बुलाई है। उसके बाद दरगाह से रुख साफ किया जाएगा। 

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    वैसे इस मसले पर सज्जादा नशीन मोहम्मद हसन रजा कादरी की ओर से आयोजित की गई सुन्नी बरेलवी कॉन्फ्रेंस में उलमा की तरफ से पहले ही एलान कर दिया गया था कि सरकार कानून बनाए तो बना दे लेकिन मुसलमान उसे मानेंगे नहीं।

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    तीन तलाक को तीन ही मानेंगे। संसद के नुमाइंदे तीन तलाक पर जो भी कानून बनाएं वो शरीयत की रोशनी में बने। मुस्लिमों के उसूल और कानून का ख्याल रखा जाए। छह माह की रोक किस वजह से लगी है। फैसले की कॉपी मिलने के बाद इसका निष्कर्ष निकाला जाएगा।