पंच केदार
आदिदेव शिव कला के भी देवता हैं। तण्डु ऋषि को तांडव की शिक्षा देनी हो या ओंकार से संगीत के साथ स्वरों की सृष्टि, महादेव सबमें सक्षम हैं। ऐसे दयानिधान महादेव को समर्पित प्राचीन मंदिर केदारनाथ आस्था के साथ कला के भी उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में विख्यात है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राजा केदार की तपस्थली होने के कारण इस तीर्थ
आदिदेव शिव कला के भी देवता हैं। तण्डु ऋषि को तांडव की शिक्षा देनी हो या ओंकार से संगीत के साथ स्वरों की सृष्टि, महादेव सबमें सक्षम हैं। ऐसे दयानिधान महादेव को समर्पित प्राचीन मंदिर केदारनाथ आस्था के साथ कला के भी उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में विख्यात है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राजा केदार की तपस्थली होने के कारण इस तीर्थ का नाम केदारनाथ पड़ा।
रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित केदारनाथ के बारे में तो सभी जानते हैं, किंतु केदारनाथ पांच हैं, जिनमें यह प्रमुख है। पुराणों में कथा है कि भगवान शंकर ने एक बार महिष रूप धारण किया। जिसके विभिन्न अंग जिन पांच स्थानों पर प्रतिष्ठित हुए, वे पंच केदार कहलाए। मुख्य केदार पीठ में तो शिव का पृष्ठ भाग प्रतिष्ठित है। अन्य केदारनाथ इस प्रकार हैं:
श्री मध्यमेश्वर: मनमहेश्वर या मदमहेश्वर नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र ऊषी मठ से 8 किलोमीटर दूर है। यहां वृषभ रूपी शिव की नाभि प्रतिष्ठित है।
श्रीतुंगनाथ: केदारनाथ से बद्रीनाथ के मार्ग में पड़ने वाले इस तीर्थ में बाहु प्रतिष्ठित है।
श्रीरुद्रनाथ: इस चतुर्थ केदार क्षेत्र में शिव-वृषभ का मुख प्रतिष्ठित है।
श्रीकल्पेश्वर: इस पंचम केदार क्षेत्र में शिव रूपी वृषभ की जटाएं प्रतिष्ठित हैं। यह स्थान कुम्हार की चट्टी के निकट है।
(साभार: देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)