Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सावन में शिव-तत्व की आराधना

    By Edited By:
    Updated: Sat, 12 Jul 2014 12:23 PM (IST)

    कल्याण की भावना ही शिव-तत्व है। जन कल्याणकारी कार्र्यो की ओर प्रवृत्त होना ही सच्ची शिव-आराधना है। इस सावन में हम गंगा व अन्य नदियों को प्रदूषित होने से बचाने का संकल्प लें। मान्यता है कि महाप्रलय के अंत में भगवान शिव ने नटराज के रूप में अपने शब्द ब्रह्म का नाद घोषित किय

    कल्याण की भावना ही शिव-तत्व है। जन कल्याणकारी कार्र्यो की ओर प्रवृत्त होना ही सच्ची शिव-आराधना है। इस सावन में हम गंगा व अन्य नदियों को प्रदूषित होने से बचाने का संकल्प लें।

    मान्यता है कि महाप्रलय के अंत में भगवान शिव ने नटराज के रूप में अपने शब्द ब्रह्म का नाद घोषित किया था। जब सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, पर्वत आदि कुछ भी नहीं थे, उस समय अंतरिक्ष में केवल ध्वनि मात्र ही थी। मान्यता है कि वही ओंकार स्वरूप शब्द ब्रहम 14 बार प्रतिध्वनित होकर व्याकरण के वाक-शक्ति के 14 सूत्र बने। इन 14 प्रतिध्वनियों से चतुर्दश भुवनों एवं चतुर्दश विद्याओं का भी विकास हुआ। जब हम सत्यं शिवं सुंदरम् कहते हैं, तो यह भी ब्रह्म के स्वरूप-लक्षण - सत्यम्, ज्ञानम्, आनंदम् पर ही आधारित है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्म मूल रूप में निर्गुण निराकार है, किंतु जगत में सगुण-निराकार तथा सगुण-साकार स्वरूप में भी उपलब्ध होता है। भगवान शिव भी साकार और निराकार रूप में पूजे जाते हैं। उनका लिंग रूप निराकार तथा मूर्ति रूप साकार का बोधक है। दोनों रूप ही ब्रह्म से अभिन्न हैं। इसीलिए उनके सगुण और निर्गुण दोनों रूपों की पूजा की जाती है।

    सनातन धर्म के आदि देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, जिसमें भगवान विष्णु की ख्याति सत्वगुण प्रधान है, ब्रह्मा की ख्याति रजोगुण प्रधान एवं भगवान शंकर की ख्याति तमोगुण प्रधान है। सामान्य लोग तमोगुण को निरर्थक व अनुपयोगी मानते हैं। परंतु विचार किया जाए तो तमोगुण अन्य गुणों का अधिष्ठान सिद्ध होता है। यदि तमोगुण नहीं होता, तो प्रकाशक सत्व गुण और क्रियात्मक रजोगुण अपने काम में वैसे ही सफल नहीं हो सकते थे, जैसे अंधकार के बिना प्रकाश और निद्रा के बिना जागृति का कोई अस्तित्व नहीं होता। आधारभूत गुण होने के कारण तमोगुण प्रभावी भी हैं। इनकी उपेक्षा एवं इन्हें दबाना भी ठीक नहीं। मान लीजिए, आप किसी बच्चे को क्रोध करने से बलपूर्वक रोक दें, तो वह कुंठित होकर या तो दब्बू हो जाएगा या फिर उग्र हो जाएगा।

    अत: तमोगुण को स्वाभाविकता से ग्रहण कर रजोगुण एवं सत्व गुण की ओर बढ़ना चाहिए। भगवान शंकर तमोगुण प्रधान हैं, ताकि अंधकारयुक्त गुण के द्वारा वे प्रकाशमान गुणों का महत्व हमें समझा सकें।

    मान्यता है कि भगवान शंकर दयालु एवं औघड़दानी हैं। यह उनका कल्याणकारी स्वरूप है। मान्यता है कि भक्त की थोड़ी-सी सेवा भाव से प्रसन्न होकर भक्तों का कल्याण कर देते हैं। इसी स्वभाव के कारण भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय निकले हुए हलाहल विष का पान कर संसार का कल्याण किया। उन्होंने समुद्र से निकले किसी भी अन्य रत्न की अभिलाषा नहीं की। पौराणिक कथाएं बताती हैं कि इन्हीं गुणों के कारण भगवान शिव ने रावण तथा भस्मासुर तक को वरदान दे दिए। इसीलिए शंकर जी महादेव कहलाते हैं। वे समस्त कलाओं और विद्याओं के आचार्य भी हैं। उनका वास्तविक स्वरूप अत्यंत सौम्य एवं शांतिदायक है- कर्पूरगौरम् करुणावतारं संसार सारं भुजगेंद्र हारम्।

    श्रावण मास में तन-मन से शिवार्चन किया जाता है। तन से शिवोपासना में अभिषेक, अर्चना, भोग, श्रृंगार आदि का विधान है, जबकि मन से शिवोपासना प्रार्थना, स्तुति, जप, भजन-कीर्तन आदि से की जाती है।

    शिव का अर्थ है कल्याण। आज के समय में हम कल्याणकारी कार्र्यो में प्रवृत्त होकर भी शिवोपासना का लाभ अर्जित कर सकते हैं। हमें अपने तथा समाज के अन्त:करण की चित्तवृत्ति में सद्गुणों की वृद्धि तथा अवगुणों को दूर करने के प्रयास करने होंगे, साथ ही प्राणिमात्र के हित में कार्य करने होंगे। प्राकृतिक साधनों के प्रति कर्तव्यपरायण होने के साथ-साथ हमें भगवान शिव की प्रमुख नदी गंगा तथा समस्त नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के प्रयास करने चाहिए। हम मात्र एक पुष्प, बिल्व पत्र एवं जल अर्पण करके नदी एवं जलाशयों की धारा में निर्मलता, स्वच्छता एवं पवित्रता बनाए रखने में सहयोग करें तथा दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा दें। यही सच्ची शिवोपासना होगी।

    वस्तुत: कल्याण की भावना ही शिव-तत्व है। सावन मास में शिव उपासना की अर्थवत्ता और सार्थकता तभी है, जब श्रद्धा एवं विश्वास के साथ-साथ हमारे भीतर शिव-तत्व को भी आत्मसात करने का मार्ग प्रशस्त होगा।