रेड जोन में कैसे चले इंडस्ट्री, उद्यमी असमंजस में, श्रमिकों की घर वापसी पर भी बिफरे
रेड जोन में इंडस्ट्री का संचालन कैसे किया जाए इसको लेकर उद्यमी असमंजस में हैं। वहीं सरकार श्रमिकों की घर वापसी करा रही है। ऐसे में फैक्ट्रियां कैसे काम करेंगी।
जेएनएन, जालंधर। तेजी से Coronavirus संक्रमण फैलने के कारण रेड जोन (Red zone) में शामिल जालंधर के उद्योगपति उद्योग चलाने को लेकर एकमत नहीं हैं। कुछ उद्योगपति एसेंशियल सर्विसेज इकाइयों को चलाने की अनुमति को सही ठहरा रहे हैं तो कुछ उद्योगपतियों का तर्क है कि यह फैसला बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
कोरोना वायरस लॉकडाउन (Coronalockdown) खुलने तक अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। अब श्रमिकों को उनके गृह राज्यों में भिजवाने की कवायद शुरू होने के बाद तो जो कुछ उद्योगपति इंडस्ट्री चलाने की अनुमति का स्वागत कर रहे थे वह भी अब बिफरे हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे उद्योगपतियों का तर्क है कि जब श्रमिक ही नहीं बचेंगे तो फैक्ट्रियां कैसे चलेंगी।
जालंधर इंडस्ट्रियल फोकल प्वाइंट एक्सटेंशन एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह सग्गू ने कहा कि एसेंशियल सर्विसेज के डेली नीड बेस्ड उद्योगों को चलाने की अनुमति देना तो सरकार की अच्छी पहल थी। उद्योगपति शारीरिक दूरी समेत अन्य दिशानिर्देशों के मुताबिक फैक्ट्री चलाने को राजी भी थे, लेकिन अब सरकार ने श्रमिकों को उनके गृह जिले में भिजवाने की व्यवस्था शुरू कर दी है। पोर्टल पर आवेदन लेने शुरू कर दिए हैं। जब श्रमिक घर ही भिजवाने थे तो फिर इंडस्ट्री खोलने की अनुमति ही क्यों दी गई।
जालंधर इंडस्ट्रियल एंड ट्रेडर्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी के कन्वीनर गुरशरण सिंह ने कहा कि सरकार एक तरफ शारीरिक दूरी को बनाए रखने पर जोर दे रही है, घरों से बाहर निकलने पर रोक है और दूसरी तरफ इंडस्ट्री चलाने की अनुमति प्रदान कर रही है। इससे बड़ा और असमंजस क्या हो सकता है। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए जरूरी था कि लोग घरों से बाहर न निकलें। फैक्ट्री घर पर बैठकर तो चल नहीं सकती। फैक्ट्री में श्रमिक भी आएंगे, मैनेजमेंट भी आएगी, सड़कों पर भी भीड़ होगी। ऐसे हालात में इंडस्ट्री चलाने की अनुमति देना बेहद गलत फैसला है। जालंधर में जिन साढे तीन सौ उद्योगपतियों ने अनुमति ले भी ली थी, उनमें से 10 फीसद भी फैक्ट्री नहीं चला रहे।
खेल उद्योग संघ के रविंदर धीर ने कहा कि इंडस्ट्री चलाने की अनुमति दिए जाने को लेकर भारी असमंजस है। वो इसलिए क्योंकि स्पोर्ट्स इंडस्ट्री (Sports industry) में 90 फीसद कॉटेज इंडस्ट्री जुड़ी हुई है। उन छोटे उद्योग धंधे चलाने वालों को अभी तक स्पष्ट ही नहीं हो पाया है कि वह अनुमति के दायरे में आते हैं या नहीं। धीर ने कहा कि रेड जोन में वैसे भी फैक्ट्री चलाना खतरों से खेलने जैसा है। स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के महासचिव एवं सावी इंटरनेशनल के संचालक मुकुल वर्मा ने कहा कि जिस तरह से जालंधर में कोरोना के मामले आ रहे हैं ऐसे हालात में तो फैक्ट्री चलाना असंभव है। कोई रिस्क नहीं लेगा।
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