'आप' में अभी मचेगा और घमासान, पंजाबी बनाम बाहरी की लड़ाई होगी तेज
पंजाब में आम आदमी पार्टी में घमासान और तेज होने की संभावना है। पार्टी में सुच्चा सिंह की जगह नए राज्य कन्वीनर के लिए जोड़ तोड़ तेज होने की संभावना है।
चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। पंजाब में सुच्चा सिंह छोटेपुर को आप के कन्वीनर के पद से हटाने के बाद आम आदमी पार्टी में घमासान चरम पर है। पार्टी के नए राज्य कन्वीनर केा लेकर जोर-तोड़ शुरू हो गई है। इस विवाद के बाद 'पंजाब में पंजाबियों' की सरकार के उठे मुद्दे ने भविष्य में 'आप' की मुश्किलें और बढऩे के संकेत दे दिए हैं। पार्टी में पंजाब बनाम बाहरी की लड़ाई भी तेज होने के संकेत हैं। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले कुछ दिनों में आप के कुछ और विकेट गिर सकते हैं।
छोटेपुर ने भले ही पंजाब में पार्टी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन वे संगठनात्मक तौर पर पार्टी को मजबूत करने में सफल नहीं हो पाए। अगर ढाई सालों में वह पंजाब में कार्यकारिणी का गठन करके जिला प्रधानों की तैनाती कर देते, तो आज वे उनकी ढाल बन सकते थे। अब इस बात को लेकर मंथन हो रहा है कि आखिर सूबे में पार्टी की कमान किसके हाथों में सौंपी जाए।
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संजय सिंह व दुर्गेश पाठक पर पहले ही कांग्रेस व अकाली दल बाहरी नेता के मुद्दे को लेकर सवालिया निशान लगा चुके हैं। नए वारिस की दौड़ में लीगल सेल के कन्वीनर हिम्मत सिंह शेरगिल व एडवोकेट एचएस फूलका सहित कई नाम देर शाम तक शामिल हो गए हैं।
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पहले शेरगिल के नाम पर लगभग सहमति बन गई थी, लेकिन पार्टी अभी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती है। चूंकि शेरगिल का कार्यक्षेत्र चंडीगढ़ और एसएएस नगर (मोहाली) रहा है, और पार्टी पंजाब में चुनाव लड़ेगी। इसलिए, शेरगिल के अलावा और भी विकल्पों पर पार्टी विचार कर रही है।
एडवोकेट फूलका लुधियाना से हैं और दंगा पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए काफी लड़ाई लड़ी है। दो-चार दिनों में इस बाबत फैसला होने की उम्मीद है। मालवा में सबसे ज्यादा सीटें होने के कारण यह भी हो सकता है कि अब पार्टी का नया वारिस मालवा से बनाया जाए।
नए कन्वीनर को मिलेगी कांटों की सेज
पार्टी के नए कन्वीनर को कांटों की सेज मिलना तय है। छोटेपुर व पार्टी के अन्य नाराज कार्यकर्ताओं को एकजुट करना सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी। हालांकि, अगले माह से चूंकि अरविंद केजरीवाल खुद पंजाब में लगातार दौरों पर रहेंगे। उम्मीद की जा रही है कि वे पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी को खत्म करने में सफल हो सकते हैं।
कूटनीति में जीत गए मान
फिल्मी पर्दे से सियासी पर्दे में अपना करियर बनाने उतरे भगवंत मान कूटनीति में आखिरकार लंबी लड़ाई के बाद जीत गए हैं। छोटेपुर के साथ एक साल पहले शुरू हुए पावरगेम में आखिरकार वह जीत गए। दोनों ही नेताओं ने कभी भी सावर्जनिक तौर पर एक दूसरे को निशाना नहीं बनाया, लेकिन एक दूसरे का नाम मुश्किल से ही इनकी जुबां से निकलता था।
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दिल्ली में करीब एक साल पहले दोनों के विवाद के बाद ही संजय सिंह को पार्टी की कमान सौंपी गई थी कि वह विवाद का निपटारा करवाएं। उसके बाद से मान चुपचाप अपनी सियासी कूटनीति चलते रहे और छोटेपुर सियासी जाल में फंसते गए।