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पेंटागन के नए धार्मिक दिशा निर्देश अभी भी भेदभाव पूर्ण

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के नए धार्मिक दिशा-निर्देश अभी भी भेदभाव पूर्ण हैं। यह धार्मिक परंपराओं का अनुपालन करने वाले सैन्य कर्मचारियों के लिए काफी कठोर हैं। यह कहना है 21 संगठनों के समूहों का। वर्तमान मसौदे, संशोधित निर्देश के तहत जब तक धार्मिक मान्यताओं को पूरा करने की अनुमति नहीं मिले

By Edited By: Published: Fri, 11 Apr 2014 09:52 AM (IST)Updated: Fri, 11 Apr 2014 09:53 AM (IST)

वाशिंगटन। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के नए धार्मिक दिशा-निर्देश अभी भी भेदभाव पूर्ण हैं। यह धार्मिक परंपराओं का अनुपालन करने वाले सैन्य कर्मचारियों के लिए काफी कठोर हैं। यह कहना है 21 संगठनों के समूहों का।

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वर्तमान मसौदे, संशोधित निर्देश के तहत जब तक धार्मिक मान्यताओं को पूरा करने की अनुमति नहीं मिलेगी सेना में सेवारत और भावी कर्मचारियों को पगड़ी हटाने के अलावा बालों और दाढ़ी कटवानी होगी। दरअसल, धार्मिक मान्यताओं के साथ सेवारत रहने की मांग अभी भी लंबित है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय को लिखे पत्र में इन 21 संगठनों ने पेंटागन से धार्मिक परंपराओं के अनुपालन के लिए अपने संशोधित निर्देशों की फिर से समीक्षा करने का आग्रह किया है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले सिख कोलिशन ने कहा कि नए दिशा-निर्देश के तहत जब तक सेवारत कर्मचारियों की मांगे लंबित हैं उन्हें धार्मिक मान्यताओं के विपरीत काम करना होगा। साथ ही अस्थाई छूट के लिए बार-बार आवेदन करना होगा। पत्र में कहा गया है कि ये सख्त निर्देश सेना में करियर बनाने के अवसरों को सीमित कर सकते हैं और कुछ मामलों में करियर को खत्म कर सकते हैं।

सिख कोलिशन के लिए कानून और नीति के निदेशक राजदीप सिंह ने कहा कि अगर कोई कर्मचारी बूट कैंप (नई भर्तियों के लिए सैन्य प्रशिक्षिण शिविर) से स्नातक करने के बाद अपनी सैन्य सेवाओं का निर्वहन सफलतापूर्वक करता है तो उनका धर्म देश की सेवा करने में आड़े नहीं आना चाहिए।

पेंटागन द्वारा 1981 में सेना में सिखों की

भर्ती प्रतिबंधित किए जाने के बाद सिर्फ तीन सिख मेजर कमलजीत सिंह कलसी, कैप्टन तेजदीप सिंह रतन और कारपोरल सिमरन प्रीत सिंह लामा को उनके धार्मिक प्रतीक चिन्हों के साथ अमेरिकी सेना में काम करने की अनुमति मिली है। पदोन्नति, अवार्ड और अफगानिस्तान में तैनाती जैसी उपलब्धियों के बावजूद नए दिशा-निर्देशों के तहत उन्हेंधार्मिक प्रतीक चिन्हों के इस्तेमाल की स्थायी अनुमति नहीं दी गई है। इनकी लगातार समीक्षा की जाएगी और इन्हें कभी भी वापस लिया जा सकता है। पत्र में कहा गया है कि नियमों की दोबारा समीक्षा किए बिना ये निर्देश अनावश्यक हैं और पसंद नहीं किए जाएंगे। पत्र पर मुस्लिम एडवोकेट्स नेशनल काउंसिल ऑफ जूइश वूमन, सिख अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फंड ने भी हस्ताक्षर किए हैं।

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