पांच साल के सफर के बाद बृहस्पति पहुंचा जूनो, अब खुलेंगे रहस्य
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का अंतरिक्ष यान जूनो बृहस्पति पर पहुंच गया है।
केप केनवेरल, रायटर। पांच साल की यात्रा के बाद नासा का अंतरिक्ष यान 'जूनो' सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति (ज्यूपिटर) की कक्षा में प्रवेश कर गया है। सौरमंडल के इस पांचवें नंबर के ग्रह के अत्यधिक विकिरण वाले प्रभाव क्षेत्र में पहुंचने में यान को तकरीबन 43,800 घंटे लगे। जूनो ने 2,57,500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से यह दूरी तय की। गूगल ने डूडल बनाकर इस सफलता का जश्न मनाया।
अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर नासा ने यह उपलब्धि हासिल की। भारतीय समयानुसार मंगलवार सुबह 8 बजकर 48 मिनट पर जूनो ने बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश किया। इसके इंजन को स्टार्ट होने में 35 मिनट का समय लगा। इसके बाद यान ने पहला संकेत भेजकर इसकी पुष्टि की। यह यान 20 महीनों तक ग्रह का चक्कर लगाएगा। एक चक्कर में यान को 14 दिनों का वक्त लगेगा। सैन एंटोनियो में स्थित रिसर्च इंस्टीट्यूट में मिशन का नेतृत्व कर रहे स्कॉट बोल्टन ने मंगलवार को इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा, 'हम वहां (बृहस्पति) पहुंच चुके हैं। हम कक्षा में हैं। हमने बृहस्पति पर फतह हासिल कर ली है।'
27 तक पहला क्लोजअप
जूनो 27 अगस्त को बृहस्पति की पहली क्लोजअप तस्वीर भेज सकता है। यान ग्रह के 4,800 किमी ऊपर से उड़ान भरेगा जो उच्च विकिरण के क्षेत्र में आता है। जूनो में लगे कंप्यूटर और अन्य अत्याधुनिक उपकरणों को 180 किलो वजनी टाइटेनियम के बक्से में रखा गया है। 37 बार परिक्रमा करने के बाद यह विकिरण की चपेट में आ जाएगा। यान 20 महीने बाद बृहस्पति के वातावरण में गोता लगाकर क्रैश हो जाएगा।
अध्ययन के लिए तैयारी
जूनो अगले तीन महीने तक खुद को बृहस्पति के अध्ययन के लिए तैयार करेगा। यह घने बादलों के नीचे की स्थिति और विशालकाय चुंबकीय क्षेत्र के बारे में पता लगाएगा। वायुमंडल में पानी की मात्रा को मापने का प्रयास भी करेगा। इससे ग्रह के उद्भव से जुड़े रहस्यों को सुलझाने में मदद मिलेगी। मालूम हो कि बृहस्पति ग्रह पर मौजूद अपरिमित गुरुत्वाकर्षण बल के कारण क्षुद्र ग्रह या धूमकेतु की टक्कर पृथ्वी से नहीं हो पाती है।
गैलीलियो के बाद दूसरा
जूनो गैलिलियो के बाद बृहस्पति की कक्षा में पहुंचने वाला दूसरा यान है। गैलिलियो ने आठ वर्षो तक बृहस्पति का अध्ययन किया था। जूनो को कम समय में खत्म करने के पीछे इसके साथ भेजे गए सूक्ष्मजीवों को वहां के वातावरण में जाने से रोकना बताया गया है।

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