सामने आया जमीन में दफन आइएसआइएस के 'सुरंगों का नेटवर्क'
इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र में आइएसआइएस के चंगुल से मुफ्ती के गांव को आजादी मिल गयी और साथ ही यहां दफन उनके सुरंगों के नेटवर्क का भी पता चला।
कुर्दिस्तान। इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र में मुफ्ती के गांव को कब की आइएसआइएस के चंगुल से आजादी मिल चुकी होती अगर इनके सुरंगों का नेटवर्क पता चल गया होता।
अंतिम आइएसआइएस लड़ाके को बाहर निकालने के लिए जब कमांडर एटो जिबारी ने अपने कुर्दिश पेशमर्गा फोर्स का नेतृत्व अंडरग्राउंड किया तब उनमें से एक ने पकड़े जाने के बजाय आत्मघाती विस्फोट से खुद को मार डाला।
पेशमर्गा कमांडर एटो जिबारी ने टेलीग्राफ को बताया,’ उसके मर जाने के बाद उसके फोन पर कॉल आयी। हमारे एक अधिकारी ने फोन पर बात की। फोन उसकी पत्नी का था। उसने पूछा, अबू मुस्साब कहां है? क्या वो जन्नत में है?' अधिकारी ने जवाब दिया ‘नहीं मेरे पैरों तले उसकी राख है।‘ पिछले एक हफ्ते में 150 से अधिक आइएस लड़ाकुओं का यही अंत हुआ।
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डेली मेल के अनुसार, 2000 वर्ष पुराना ईसाइयों का गांव मुफ्ती 2014 की गर्मियों से ही आइएसआइएस के कंट्रोल में था तब से जिहादियों ने वहां काला झंडा लगा दिया था। अंतत: बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय आइएसआइएस विरोधी गठबंधन में अमेरिका व इसके पार्टनरों के सहयोग से आजाद हो पाया। कमांडर ने कहा कि ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिक सबसे अधिक शामिल हुए।
आइएसआइएस ने पूरब से मुफ्ती आने वाले खाजिर नदी के पुल के ऊपर बम से हमला किया था। अब इस गांव तक जाने का केवल एक ही जरिया है और वह है पेशमर्गा का मेटल क्रॉसिंग।
अमेरिकी B52 ने एक घर पर हमला किया जिसके अंदर 'सुरंगों के नेटवर्क' का पता चला। इन सुरंगों का उपयोग बचने और खुद को छिपाने के लिए आइआइएस द्वारा किया जाता था। कुछ सुरंग 10 फीट गहरे थे, इनका सिस्टम बेहतरीन था जो एक मील के चौथाई हिस्से के बराबर फैले हुए थे।
लड़ाकुओं ने भूमिगत गलियारों की टेढी मेढी गलियों को खोदा और पड़ोसी के घर के अंदर मिट्टी के टीले को छिपा रखा था। जिहादियों के पास हफ्तों तक भूमिगत रहने के लिए पर्याप्त सुविधाएं थीं जैसे- अधिक मात्रा में दवाएं, पानी और भोजन आदि। वहां की दीवारों पर ‘दावला इस्लामिया या इस्लामिक स्टेट’ लिख रखा था। साथ ही बचकाने तरीके से चित्रकारी की गयी थी जिसमें हवाई हमलों को उकेरा गया था।
लेफ्टिनेंट साद उमर ने कहा सुरंगों में प्रवेश का रास्ते स्कूल के भीतर बनाया गया था। क्योंकि वे जानते थे कि स्कूल पर विस्फोट नहीं किया जाएगा। इसे इस तरह से बनाया गया था कि आइएसआइएस पेशमर्गा के सैनिकों को गुमराह कर सके।
मात्र 16 साल के एक आइआइएस लड़ाके, अहमद इब्राहिम को पकड़ा गया। रिक्रूट होने के पहले वह शहर के ट्रैफिक पुलिस बनने के लिए प्रशिक्षण ले रहा था। पेशमर्गा से मुफ्ती को बचाने के लिए उसे 60,000 दिनार और गैस कनस्तर दिया गया। अधिकतर आइआइएस फाइटर्स मोसुल व आसपास के शहरों से युवा और सुन्नी मुसलमान थे।
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मुफ्ती से पलायन करने वाले अधिकतर निवासी और आसपास के शहरों के लोग डरे हुए हैं, उनका कहना है कि जब तक सांप का सिर नहीं काटा जाएगा वे वापस काटने को आएंगे। 50 वर्षीय हामिद अब्देल माजिद ने कहा, ‘हमें तभी अपने घर वापस आएंगे जब इराक की सरकार हमें आइएसआइएस के हारने की गारंटी देगी।‘
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