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    खतरनाक आतंकी संगठन आइएसआइएस के चंगुल में फंसने से अब रोकेगा गूगल

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Thu, 08 Sep 2016 07:54 PM (IST)

    खतरनाक आतंकी संगठन आईएसआईएस में शामिल होनेवाले लोगों को अब गूगल ब्रेन वॉश करने का काम करेगा।

    जेएनएन, नई दिल्ली: आतंकी संगठन आइएस में शामिल होने के इच्छुक युवक-युवतियों का ब्रेन वाश करने के लिए गूगल प्रोग्राम तैयार कर रहा है। इसके तहत अरबी और अंग्रेजी के 1700 शब्दों का बैंक बनाया गया है। यह प्रोग्राम गूगल सर्च पर निगाह रखेगा और अगर कोई व्यक्ति इस बैंक में दर्ज कुछ शब्दों का उपयोग बार-बार करेगा तो उसे ऐसे यूट्यूब वीडियो लिंक्स की तरफ रीडायरेक्ट किया जाने लगेगा जिनमें आइएस जैसे संगठनों की वास्तविकता बताई गई है। यह एक तरह की काउंसेलिंग होगी।

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    इस प्रोग्राम पर पिछले एक साल से काम किया जा रहा है। इसे रीडायरेक्ट मेथड नाम दिया गया है। इस पर गूगल की थिंकटैंक काम कर रही है, उसे जिगसॉ कहते हैं। यह गूगल के स्वामित्व वाली कंपनी है। जिगसॉ के रिसर्च और डेवलपमेंट प्रमुख यासमिन ग्रीन हैं। उनकी टीम ने आइएस की कार्यप्रणाली और असलियत समझने के लिए काफी शोध-अध्ययन किया है। ग्रीन ने तो ब्रिटेन और इराकी जेलों में बंद आइएस आतंकियों और उनसे विद्रोह कर भाग आए लोगों से जाकर मुलाकात भी की।

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    लिंक्स किस तरह के:

    ये वे लिंक्स हैं जिनमें आइएस में शामिल रहे लोग अपने अनुभव बताते हैं कि आतंक फैलाने वाले कितनी निर्दयी और शोषक हैं और अपने साथियों के साथ भी किस तरह निर्मम व्यवहार करते हैं। कुछ में आइएस के कब्जे से भागकर आई महिलाएं अपने अनुभव साझा करती हैं। कुछ में बताया गया है कि आइएस के कब्जे वाले इलाकों में खाने-पीने, रहने को लेकर कितनी दिक्कतें होती हैं क्योंकि इन इलाकों का शेष दुनिया से संपर्क बहुत सीमित होता है।

    कुछ लिंक्स में विभिन्न देशों के मुल्ला-मौलवी आइएस की असलियत जाहिर करते हैं। वे कुरान की आयतें भी उद्धृत करते हैं। गूगल की टीम ने एक सतर्कता बरती है। ये लिंक्स नए नहीं हैं। सभी पुराने हैं जिन्हें हजारों-लाखोंलोग देख चुके हैं। इसलिए आइएस के लिए यह कहकर गुमराह करने का मौका नहीं है कि इनमें नए किस्म के आरोप लगाए जा रहे हैं।

    प्रयोग सफल रहा है:

    इस साल की शुरुआत में करीब दो महीने इस प्रोग्राम को रन कर देखा जा चुका है। इस दौरान सर्च करने वाले करीब तीन लाख लोगों को इस तरह के लिंक्स की तरफ रीडायरेक्ट किया गया। पाया गया कि इन लिंक्स पर लोग अपेक्षाकृत ज्यादा समय बिताते हैं। इसी महीने इस प्रयोग का दूसरा चरण उत्तरी अमेरिका में शुरू किया जा रहा है।

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    कई संगठन मदद कर रहे:

    आतंक के खिलाफ काम कर रहे कई संगठनों के अध्ययन से गूगल की टीम को काफी मदद मिल रही है। लंदन के मूनशॉट काउंटरिंग वायलेंट एक्सट्रीमिज्म और अमेरिका के जेन नेक्स्ट फाउंडेशन को इस टीम ने अपने साथ जोड़ा है। इस तरह के वीडियो जुटाने और उसके कंटेंट को लेकर सतर्क अध्ययन करने के लिए गूगल लेबनान की कंपनी क्वान्टम कम्युनिकेशंस की मदद भी ले रही है।

    आइएस समर्थक पकड़े भी जाएंगे:

    आइएस अपने प्रचार-प्रसार के लिए इंटरनेट पर काफी कुछ निर्भर रहता है। इन पर रोक की बहुतेरी कोशिश होती रही है। गूगल और फेसबुक काफी सामग्री को ब्लॉक भी करती रहती हैं। स्वाभाविक है कि नए प्रोग्राम के जरिये आइएस का प्रचार करने वाले लिंक्स पर जाना मुश्किल होगा। यही नहीं, आइएस समर्थकों के साथ उनलोगों पर भी निगाह रखने और उन्हें पकड़ने में मदद मिलेगी जो इस संगठन में शामिल होने के इच्छुक हैं।