आज धूमकेतु 67पी पर उतरेगा रोसेटा, 10 साल में तय की 6.5 अरब किमी दूरी
यूरोपीय अंतरिक्ष यान रोसेटा बुधवार को 67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेनको नामक धूमकेतु पर पहुंचेगा। अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो पहली बार कोई अंतरिक्षयान किसी धूमकेतु पर उतरेगा। रोसेटा यान वहां पहुंचकर सौरमंडल के बनने के रहस्यों को खंगालेगा।
वाशिंगटन। यूरोपीय अंतरिक्ष यान रोसेटा बुधवार को 67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेनको नामक धूमकेतु पर पहुंचेगा। अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो पहली बार कोई अंतरिक्षयान किसी धूमकेतु पर उतरेगा। रोसेटा यान वहां पहुंचकर सौरमंडल के बनने के रहस्यों को खंगालेगा।
67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेनको का पिछले दस सालों से पीछा कर रहा रोसेटा अंतरिक्ष यान का एक भाग फिल लैंडर मुख्य यान से अलग होकर बुधवार की सुबह 10.35 बजे धूमकेतु की सतह पर उतरेगा।
मुख्य यान धूमकेतु के फेरे लेगा :
मुख्य रोसेटा अंतरिक्ष यान धूमकेतु 67पी की कक्षा में वर्ष 2015 तक चक्कर लगाता रहेगा। मुख्य रोसेटा 67पी की कक्षा के चक्कर लगाते हुए इस बात का अध्ययन करेगा कि विभिन्न दिशाओं में सूर्य के सम्मुख होने पर धूमकेतु में कितना और किस तरह का परिवर्तन आता है। सूर्य के सामने आने पर धूमकेतु की गति और दिशा पर क्या फर्क पड़ता है।
ढाई दिन सक्रिय रहेगा फिल लैंडर :
वहीं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक अंतरिक्षयान का एक भाग रोसेटा फिल लैंडर बुधवार को 67पी धूमकेतु की सतह पर उतरेगा और करीब ढाई दिन तक वहां सक्रिय रहेगा। धूमकेतु पर उतरते ही उसकी कुछ फोटो खींचकर पृथ्वी पर भेजेगा। कभी किसी धूमकेतु से खिंची गई ये पहली तस्वीरें होंगी।
साइट जे पर होगी खुदाई
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार 67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेनको नामक धूमकेतु की सतह पर फिल लैंडर धूमकेतु पर स्थित एक पूर्वनिर्धारित स्थल एगिलकिया (साइट जे) की खुदाई कर सतह के नमूने भी लेगा। साथ ही उसकी सतह में मौजूद अवयवों का भी अध्ययन करेगा। इस स्थान को पृथ्वी पर नील नदी के किनारे बसे एगिलकिया नाम एक द्वीप के नाम पर दिया गया। फिले द्वीप के डूबने के बाद एगिलकिया द्वीप पर प्राचीनतम इमारतों को पुन:स्थापित किया गया था।
10 सालों से कर रहा 67पी का पीछा :
वर्ष 2004 में लांच किया गया रोसेटा अंतरिक्ष यान पिछले दस सालों से अंतरिक्ष में धूमकेतु 67पी/चुरयोमोव-गेरासिमेनको का पीछा करता रहा है। इस रोचक सफर में यान 6.5 अरब किलोमीटर की दूरी तय करके 67पी धूमकेतु की सतह पर उतरने वाला है। लेकिन इससे पहले वह तीन बार पृथ्वी के चक्कर लगा चुका है और एक बार मंगल के पास से गुजरते हुए उसके भी फेरे ले चुका है। ये भ्रमण भी दिशाहीन नहीं था बल्कि दोनों ग्रहों की कक्षा में फेरे लेने से यान को गुरुत्वाकर्षण से ऊर्जा हासिल हुई जिसकी मदद से वह सौरमंडल में बहुत दूर तक जा पाने में कामयाब रहा।
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