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    मिल गया ध्यानचंद का ऐतिहासिक वीडियो, क्या मदद करेगी सरकार?

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    Updated: Thu, 29 Aug 2013 03:07 PM (IST)

    ध्यानचंद, यह वह नाम है जिसे क्रिकेट की दीवानगी के बीच आज का युवा शायद ही पहचाने लेकिन अगर कोई ऐसा वीडियो मिल जाए जिससे देश भर के लोगों को यह दिखाया जा ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली। ध्यानचंद, यह वह नाम है जिसे क्रिकेट की दीवानगी के बीच आज का युवा शायद ही पहचाने लेकिन अगर कोई ऐसा वीडियो मिल जाए जिससे देश भर के लोगों को यह दिखाया जा सके कि आखिर ध्यानचंद में क्या खूबी थी और क्यों दुनिया भर की हॉकी टीमें इस वन मैन आर्मी से कांपती थीं, तब शायद यह लोगों के जहन में बिठाया जा सके कि सचिन तेंदुलकर से आगे भी एक दुनिया है। अब यह सपना सच हो सकता है क्योंकि खबरों के मुताबिक जर्मनी में मौजूद एक ऐसा दुर्लभ वीडियो मिल गया जिसमें 1936 बर्लिन ओलंपिक में दद्दा (ध्यानचंद) के वह कारनामे शामिल हैं इस पीढ़ी ने कभी देखा तक नहीं।

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    एक खबर के मुताबिक ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद को ध्यानचंद पर रिसर्च करने वाले हेमंत दुबे ने एक ऐसे वीडियो की खोज कर ली है जिसमें बर्लिन ओलंपिक फाइनल में भारत की ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। उस फाइनल मैच में उस समय 31 वर्षीय ध्यानचंद ने गोल की हैट्रिक लगाई थी, जिसने जर्मनी की हार तय कर दी थी। उनके इस शानदार प्रदर्शन से मैदान पर मौजूद मेजबान देश के तानाशाह एडॉल्फ हिटलरभी सन्न रह गए थे और उन्होंने भी ध्यानचंद की जमकर तारीफ की थी। खबरों के मुताबिक उसी मैच के दौरान बर्लिन के मशहूर नाजी फिल्म निर्माता लेनी राइफेंसटाल ने इस मैच के ज्यादातर अंश अपने कैमरे में कैद कर लिए थे। एक अंग्रेजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में ध्यानचंद के पुत्र अशोक ध्यानचंद ने बताया है कि उन्होंने और हेमंत दुबे ने इस मामले में जर्मन कंसलेट के जरिए सीधे जर्मनी में राइफेंसटाल के परिवार से संपर्क साधा है और उन्हें उम्मीद है कि अगर सरकार ने साथ दिया तो वह उन टेप को भारत लाने में सफल रहेंगे।

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    राइफेंसटाल को खुद हिटलर ने 1936 बर्लिन ओलंपिक की डॉक्यूमेंट्री बनाने के निर्देष दिए थे। ओलंपिया नाम की यह डॉक्यूमेंट्री दो हिस्सों में हैं जिसमें फाइनल का अच्छा खास फुटेज मौजूद है। अगर उन सभी क्लिप को जोड़ा जाए तो 20-25 मिनट के उस एतिहासिक वीडियो को देखा जा सकेगा जिसमें ध्यानचंद इतिहास रचते देखे गए। राइफेंसटाल उन विवादित लोगों में से थे जिन्हें हिटलर ने अपने राजनीतिक फायदों के लिए इस्तेमाल किया था। उस ओलंपिक के अंत में हिटलर ध्यानचंद से इतना प्रसन्न हुए थे कि उन्होंने ध्यानचंद को जर्मनी आकर रहने का और अपनी सेना में कर्नल की पोस्ट देने का ऑफर तक कर डाला था, जिसे ध्यानचंद ने तुरंत ही ठुकरा दिया था।

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