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    दिल्ली में मोदी होंगे चेहरा, विकास होगा मुद्दा

    By Rajesh NiranjanEdited By:
    Updated: Wed, 05 Nov 2014 06:10 AM (IST)

    महाराष्ट्र व हरियाणा की तरह दिल्ली में भी भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे है। वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के बगैर चुनाव मैदान में उतरेगी, जिससे कि मोदी की छवि का लाभ उसे चुनावी समर में मिल सके। इसके लिए केंद्र सरकार की उपलब्धियों को प्रचारित कर दिल्लीवासियों को

    नई दिल्ली, [संतोष कुमार सिंह]। महाराष्ट्र व हरियाणा की तरह दिल्ली में भी भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे है। वह मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के बगैर चुनाव मैदान में उतरेगी, जिससे कि मोदी की छवि का लाभ उसे चुनावी समर में मिल सके। इसके लिए केंद्र सरकार की उपलब्धियों को प्रचारित कर दिल्लीवासियों को जोडऩे की कोशिश होगी।

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    दिल्ली में होने जा रहे मध्यावधि चुनाव में भाजपा किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती है। इसलिए पार्टी ने दिल्ली में पहली बार किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बजाए सामूहिक नेतृत्व में चुनावी दंगल में उतरने का फैसला किया है। पार्टी का कहना है कि पूरे देश में मोदी की लहर चल रही है। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र व हरियाणा में विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली जीत से यह साबित भी हो गया है।

    इसलिए दिल्ली में भी मोदी की छवि का लाभ पार्टी को मिलेगा। कार्यकर्ता भी एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे। इसके विपरीत यदि पार्टी किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो जहां पार्टी में गुटबाजी बढ़ेगी वहीं विपक्षी पार्टियां दिल्ली के मुद्दे उठाने के साथ-साथ व्यक्गित हमले करेंगी। इससे मोदी की छवि व केंद्र सरकार के काम को वोट में बदलने की रणनीति को नुकसान पहुंच सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने की कोशिश करेगी। इसके लिए पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार दिल्ली में मोदी की चुनावी रैलियों की संख्या भी बढ़ेगी।

    कभी कारगर नहीं रहा सीएम प्रत्याशी घोषित करना

    1993 : मदन लाल खुराना : भाजपा ने 49 सीटें जीतकर दिल्ली में सरकार बनाई। मदन लाल खुराना दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने।

    1998 : सुषमा स्वराज : भाजपा मात्र 15 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार बनाई।

    2003 : मदन लाल खुराना : भाजपा के खाते में मात्र 20 सीटें आई और शीला दीक्षित दूसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं।

    2008 : प्रोफेसर विजय कुमार मलहोत्रा : भाजपा को इस बार भी निराशा हाथ लगी, पार्टी को 23 सीटें हासिल हुई और शीला दीक्षित तीसरी बार दिल्ली की गद्दी संभालीं।

    2013 : डॉ. हर्षवर्धन : 32 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में तो उभरी लेकिन सरकार नहीं बना सकी।

    भाजपा में ये हैं मुख्यमंत्री पद के दावेदार

    प्रोफेसर जगदीश मुखी: भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक।

    डॉ. हर्षवर्धन: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तथा दिल्ली प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष, पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने इन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इनके नेतृत्व में दिल्ली की सातों सीटें जीती थीं।

    सतीश उपाध्याय: दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष।

    विजय गोयल: राज्यसभा सदस्य तथा दिल्ली प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष।

    कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से: लवली

    नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने कहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है। उन्होंने विधानसभा को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराए जाने की उपराज्यपाल नजीब जंग की सिफारिश को देर से लिया गया सही फैसला करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी पूरे दमखम से चुनाव मैदान में उतरेगी और सत्ता में वापसी करेगी। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में मंगलवार को लवली ने कांग्रेस का पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि पार्टी शुरू से यह कहती रही कि दिल्ली में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं है, लिहाजा विधानसभा को भंग कर चुनाव कराया जाना चाहिए।

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    भाजपा सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। समय आने पर पार्टी नेतृत्व नेता का नाम तय करेगा। पार्टी प्रधानमंत्री को आगे कर चुनाव लड़ेगी। -सतीश उपाध्याय, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष

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