मोदी पर नरम पड़ा अमेरिका
चुनावी मौसम और सियासी हवा का रुख भांप अमेरिका ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से दोस्ती की पहल की है। भारत में अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल 13 फरवरी को गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी के मिलने के लिए गांधीनगर पहुंचेंगी। 'वेलेंटाइन डे' की पूर्व संध्या पर अमेरिकी राजनयिक की मुलाकात मोदी के साथ संबंधों में बीते एक दशक से चल रहे शीतकाल को खत्म कर दोस्ती की बासंती शुरुआत होगी।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। चुनावी मौसम और सियासी हवा का रुख भांप अमेरिका ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से दोस्ती की पहल की है। भारत में अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल 13 फरवरी को गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी के मिलने के लिए गांधीनगर पहुंचेंगी। 'वेलेंटाइन डे' की पूर्व संध्या पर अमेरिकी राजनयिक की मुलाकात मोदी के साथ संबंधों में बीते एक दशक से चल रहे शीतकाल को खत्म कर दोस्ती की बासंती शुरुआत होगी।
विदेश मंत्रालय के मुताबिक, मोदी से मुलाकात के लिए अमेरिकी दूतावास ने कुछ वक्त पहले अनुमति का आग्रह किया था। मंत्रालय प्रवक्ता के अनुसार, विदेशी राजनयिकों की ओर से संवैधानिक पदों पर निर्वाचित नेताओं से भेंट के लिए आग्रह किया जाता है। मंत्रालय ने इस बाबत मशविरे के बाद मदद मुहैया कराई गई और इस सप्ताह के अंत में बैठक तय की गई है। यह बात और है कि विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने मोदी पर गुजरात दंगों को लेकर तंज का मौका नहीं छोड़ा।
सूत्रों के मुताबिक, मोदी से 13 फरवरी को प्रस्तावित भेंट के सहारे अमेरिका आम चुनावों के पूर्व सियासी पुल बनाने की जुगत में है। मोदी से संपर्क की कड़ी जोड़ने की यूरोपीय संघ और ब्रिटेन की ओर से हुई पहल के बाद अमेरिका पहले ही लेट हो चुका है। अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता के अनुसार, मोदी से मुलाकात भारत के वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं व कारोबारी शख्सियतों संग संपर्क को लेकर नवंबर में शुरू हुए सिलसिले का हिस्सा है। मोदी से संपर्क की कोशिश में दूतावास के दो अधिकारी नवंबर 2013 में गांधी नगर भी गए थे।
अमेरिका की ओर से इस यूटर्न की तैयारी वैसे बीते कई महीनों से हो रही थी। जून 2013 में भाजपा के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की कमान मोदी के हाथ आने के बाद से ही भीतरखाने प्रयास तेज हो गए थे। जुलाई 2013 में भाजपा प्रमुख राजनाथ सिंह के पांच दिनी अमेरिका दौरे में सियासी नेताओं से हुई मुलाकातों ने भी वक्त की नजाकत को भांप नजरिया बदलने की जमीन बनाई। रिश्तों की कड़ी जोड़ने में अमेरिका में बसे गुजराती मूल के अप्रवासी भारतीयों ने भी भूमिका अदा किया।
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भारत में सियासी माहौल के मद्देनजर अमेरिका की चिंताएं मोदी संग चीन के संपर्को को लेकर भी है। चीन 2011 से मोदी खेमे के साथ राजनयिक संपर्क के तार जोड़े हुए है। चीन ने अगस्त 2011 में अपने राजदूत को मोदी से मिलने गांधी नगर भेजा था। वहीं मोदी नवंबर 2011 में पांच दिनी चीन दौरे पर भी गए थे।
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2002 में हुए गुजरात दंगों को लेकर अमेरिका मोदी का बहिष्कार करता रहा है। यहां तक की 2005 में उन्हें वीजा देने से भी इन्कार कर चुका है, लेकिन दिसंबर 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी की लगातार तीसरी जीत और राष्ट्रीय राजनीति में उनके बढ़े कद के मद्देनजर यूरोपीय संघ के राजदूतों ने भी दावत पर उनसे भेंट की थी। इसके अलावा ब्रिटेन मोदी के प्रति नजरिये को बदलते हुए अपने राजदूत को मुलाकात के लिए अक्टूबर 2012 में गांधीनगर भेजा था।
मोदी व अमेरिकी राजदूत की भेंट सरकार के लिए कोई मुद्दा नहीं है। लोकतांत्रिक देश में राजनयिकों को किसी से भी मिलने का हक है। उम्मीद करता हूं कि एक दिन मोदी को अमेरिकी वीजा भी मिल जाएगा। -आनंद शर्मा (केंद्रीय वाणिज्य मंत्री)
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