नीतिगत लकवे पर सवाल टाल गईं अमेरिकी राजदूत
मनमोहन सरकार पर नीतिगत लकवे से ग्रस्त होने का आरोप लगाने वाली अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल को लगता है वाशिंगटन से कुछ निर्देश दिए गए हैं। तभी तो यहां इस संबंध में पूछे गए सवाल को यह कहकर टाल गईं कि वह एक नौकरशाह और राजनयिक हैं। अलबत्ता, उन्होंने यह उम्मीद जताई कि यहां अमेरिकी कंपनियों को निवेश के मामले में बेहतर सहूलियत
मुंबई। मनमोहन सरकार पर नीतिगत लकवे से ग्रस्त होने का आरोप लगाने वाली अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल को लगता है वाशिंगटन से कुछ निर्देश दिए गए हैं। तभी तो यहां इस संबंध में पूछे गए सवाल को यह कहकर टाल गईं कि वह एक नौकरशाह और राजनयिक हैं। अलबत्ता, उन्होंने यह उम्मीद जताई कि यहां अमेरिकी कंपनियों को निवेश के मामले में बेहतर सहूलियतें मिलेंगी।
एशिया सोसायटी के एक कार्यक्रम में सोमवार की रात शिरकत करने पहुंची पावेल से पूछा गया था, क्या वह भारत के मौजूदा नीतिगत अनिर्णय से निराश हैं? इसका सीधा जवाब टालते हुए उन्होंने कहा, भारत के नीतिगत मामलों के विश्लेषण की जरूरत है लेकिन हमारी नजर यहां अमेरिकी निवेश को बढ़ावा देने के उपायों पर है। कुछ मामले लटके हुए हैं। उम्मीद है कि वे आगे बढ़ेंगे। मालूम हो कि 21 मई को चेन्नई में एक कार्यक्रम में पावेल ने पिछली तारीख से टैक्स वसूली जैसे कई मामलों का जिक्र करते हुए यूपीए सरकार के नीतियों की आलोचना की थी। लेकिन अब उनका सुर बदला हुआ नजर आ रहा है।
भारत और अमेरिका में एटमी करार के ठंडे बस्ते में चले जाने के सवाल पर पावेल ने कहा कि ऐसा नहीं है। हम चाहते हैं कि यहां अमेरिकी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में बराबरी का मौका मिले। इस संबंध में कुछ तकनीकी समझौते होने हैं। अगले कुछ महीनों में यह काम पूरा हो जाएगा। दूसरी दिक्कत जवाबदेही को लेकर है। अमेरिकी कंपनियों को लगता है कि भारत में इस संबंध में जो कानून हैं, वह अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे नहीं उतरते।
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