केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, तीन तलाक भारतीय संविधान के खिलाफ
सरकार ने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के हलफनामे का हवाला देते हुए कहा है कि बोर्ड ने स्वयं उसमें इन्हें अनचाही प्रथाएं कहा है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने एक बार फिर मुस्लिम महिलाओं के हक की तरफदारी करते हुए सुप्रीमकोर्ट में कहा है कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, बहु विवाह और हलाला से मुस्लिम महिलाओं को संविधान में मिले बराबरी के हक का हनन होता है।
बराबरी के हक और महिलाओं की गरिमा से किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता। सरकार ने ये भी कहा है कि ये प्रथाएं मुस्लिम धर्म का अभिन्न अंग नहीं हैं। धार्मिक आजादी का अधिकार संविधान में मिले बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार के आधीन है। सरकार ने ये बात तीन तलाक मामले में सुप्रीमकोर्ट में दाखिल अपनी लिखित दलीलों में कही है। सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ 11 मई से तीन तलाक मामले पर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने सभी पक्षों को दो सप्ताह में लिखित दलीलें दाखिल करने की छूट दी थी।
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सरकार ने कहा है कि मुस्लिम महिलाएं जो भारत की जनसंख्या का आठ फीसद हिस्सा हैं (लगभग 96.68मिलियन), सामाजिक और आर्थिक रूप से बहुत ही असुरक्षित हैं। भले ही तीन तलाक या बहुविवाह से सीधे तौर पर कम महिलाएं प्रभावित होंगी, लेकिन ये भी सच है कि इस कानून की जद में आने वाली हर महिला हर समय इसके भय में जीती है जिसका उसके स्तर, उसकी पसंद, उसके व्यवहार और गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार पर असर पड़ता है। सरकार का कहना है कि भले ही इन प्रचलनों से समाज के एक छोटे से वर्ग के मौलिक अधिकारों का हनन होता हो लेकिन इससे कोर्ट को न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल करने से रोका नहीं जा सकता।
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सरकार ने तीन तलाक हलाला और बहुविवाह प्रथा का विरोध करते हुए कहा है कि संविधान में सभी नागरिकों को अपने विश्वास और आस्था को मानने की आजादी दी गई है। लेकिन प्रत्येक प्रथा को इस आस्था और विश्वास का अभिन्न हिस्सा नहीं कहा जा सकता। धार्मिक प्रथा हर हाल में संविधान में दिये गये लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और गरिमा से जीवन जीने के संवैधानिक उद्देश्य को संतुष्ट करने वाली होनी चाहिए। तीन तलाक, बहु विवाह, हलाला को धर्म का जरूरी हिस्सा नहीं कहा जा सकता। इसलिए इन्हें अनुच्छेद 25 (धार्मिक आजादी) के तहत स्वत: संरक्षण नहीं मिल सकता।
सरकार ने मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के हलफनामे का हवाला देते हुए कहा है कि बोर्ड ने स्वयं उसमें इन्हें अनचाही प्रथाएं कहा है। किसी भी अनचाहे प्रचलन को ऊपर उठा कर अनिवार्य प्रचलन नहीं किया जा सकता। सरकार ने मुस्लिम महिलाओं की देश के अन्य धर्मो और वगरें की महिलाओं के साथ तुलना के अलावा अंतरराष्ट्रीय समझौतों से भी तुलना की है। कहा है कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह प्रथाओँ को अनुच्छेद 25 का संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
अनुच्छेद 25 (धार्मिक आजादी) का अधिकार संविधान मे दिये गये मौलिक अधिकारों विशेषकर बराबरी और सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार के अधीन है। पर्सनल ला को अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जाएगा। सरकार ने कहा है कि ये प्रचलन भारत के अंतरर्रष्ट्रीय संधियों के दायित्वों के अनुरूप नहीं हैं।