फड़नवीस को लेकर आशंकाओं की भी कमी नहीं
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस का महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना भले तय माना जा रहा हो, लेकिन उन्हें लेकर आशंकाएं भी कम नहीं हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के पहले से ही 'राष्ट्र में नरेंद्र, महाराष्ट्र में देवेंद्र' का नारा चल रहा है। लोकसभा व हाल के विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़े गए
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष देवेंद्र फड़नवीस का महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना भले तय माना जा रहा हो, लेकिन उन्हें लेकर आशंकाएं भी कम नहीं हैं।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के पहले से ही 'राष्ट्र में नरेंद्र, महाराष्ट्र में देवेंद्र' का नारा चल रहा है। लोकसभा व हाल के विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़े गए और दोनों चुनावों में पार्टी को अप्रत्याशित सफलता मिली। लेकिन, प्रदेश भाजपा का एक वर्ग मानता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की वर्षो की मेहनत व मोदी के नाम की लहर के बिना ये सफलताएं संभव नहीं थीं। हालांकि इन सफलताओं का श्रेय अकेले फड़नवीस को दिए जाने का कोई खुलकर विरोध नहीं कर रहा है, लेकिन कुछ दिनों पहले ही विदर्भ के विधायकों का एक वर्ग नितिन गडकरी के पक्ष में खड़ा दिखाई दिया। मुख्यमंत्री पद के दो अन्य दावेदारों सुधीर मुनगंटीवार और विनोद तावड़े ने जित तरह गडकरी का नाम आगे किया, उससे साफ होता है कि इन सभी के लिए अपने से कनिष्ठ फड़नवीस का नेतृत्व स्वीकारना आसान नहीं होगा।
फड़नवीस की उम्र (42 साल) भी उनकी संभावित जिम्मेदारियों के आड़े आ रही है। निश्चित रूप से उनकी छवि साफ-सुथरी है। वह अध्ययनशील और जुझारू हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दों पर वह समझौता न करने के लिए जाने जाते हैं। राजनीति में उन्होंने सभासद से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर तय किया है। लेकिन, प्रशासनिक अनुभव में वह शून्य हैं। प्रधानमंत्री मोदी चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में कई बार कह चुके हैं कि मुंबई और महाराष्ट्र की मजबूती पर ही राष्ट्र की मजबूती निर्भर है। ऐसे में फड़नवीस की अनुभवहीनता महाराष्ट्र में पहली बार बनने जा रही भाजपानीत सरकार के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। यह प्रयोग भाजपा को उत्तराखंड और झारखंड जैसे अनुभव दे सकता है। खासतौर से शिवसेना और राकांपा जैसे दलों के सहारे चलने वाली अल्पमत सरकार के कार्यकाल में।
जातिगत गणित भी फड़नवीस के पक्ष में नही
जातिगत गणित भी फड़नवीस के पक्ष में नहीं है। 33 फीसद मराठा और 14 फीसद दलित आबादी वाले राज्य में ब्राह्मण मुख्यमंत्री अब तक सिर्फ एक बार मनोहर जोशी ही रहे हैं। वह भी बाल ठाकरे जैसे विराट व्यक्तित्व के रिमोट कंट्रोल बनकर। चुनाव अभियान के दौरान छगन भुजबल जैसे तेजतर्रार नेता भाजपा पर सेठजी और भट्टजी (बनिया-ब्राह्मण) की पार्टी होने का आरोप बार-बार लगाते रहे हैं। किसी कम उम्र के ब्राह्मण मुख्यमंत्री पर सदन के अंदर भी इस प्रकार के हमले परेशान करते रहेंगे। खासतौर से अन्य दलों से दोस्ताना व्यवहार न रखने वाले तेजतर्रार फड़नवीस जैसे नेता को।
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