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    तेलंगाना आगे, राहुल एजेंडा पीछे

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    Updated: Sat, 08 Feb 2014 08:22 AM (IST)

    राजनीतिक दुविधा से उबरते हुए कांग्रेस ने अलग तेलंगाना की पिच पर खुलकर खेलने का फैसला कर लिया है। हालांकि इसके लिए उसे फिलहाल राहुल गांधी के एजेंडे को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा है। शुक्रवार को मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में अलग तेलंगाना विधेयक पर मुहर लगा दी गई है। अगले हफ्ते 12 फरवरी को राज्यसभा में ते

    नई दिल्ली [जाब्यू]। राजनीतिक दुविधा से उबरते हुए कांग्रेस ने अलग तेलंगाना की पिच पर खुलकर खेलने का फैसला कर लिया है। हालांकि इसके लिए उसे फिलहाल राहुल गांधी के एजेंडे को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा है। शुक्रवार को मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में अलग तेलंगाना विधेयक पर मुहर लगा दी गई है। अगले हफ्ते 12 फरवरी को राज्यसभा में तेलंगाना राज्य विधेयक तमाम संशोधनों और सुझावों के साथ पेश किया जाएगा। भाजपा के सशर्त समर्थन के आश्वासन के बाद सरकार के प्रबंधकों को भरोसा है कि अगले हफ्ते वह संसद से भी अलग तेलंगाना का विधेयक पारित करा ले जाएंगे। हालांकि, कांग्रेस सांसदों के भीतर अभी भी हैदराबाद और रायलसीमा क्षेत्र को लेकर दो मसलों पर तेलंगाना और सीमांध्र के सांसदों का विरोध बरकरार है, जिसको लेकर मंत्रिमंडल की बैठक में भी खासी तकरार हुई।

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    विवादों और विरोध से एकबारगी तेलंगाना से कदम वापस खींचने के सियासी नुकसान का आकलन करने के बाद पार्टी सक्रिय हुई और इस अलग राज्य के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हो गई। आंध्र प्रदेश में सीमांध्र और तेलंगाना के सांसदों और उसके अपने मुख्यमंत्री किरण रेड्डी की खुली बगावत से ज्यादा अलग तेलंगाना के लिए उसे भाजपा की जरूरत थी। भाजपा ने साफ कर दिया कि वह कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे के लिए सहयोग करने को तैयार नहीं होगी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल, आंध्र प्रदेश के प्रभारी महासचिव दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश की भाजपा नेताओं सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू से कई चक्र बातचीत हुई। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा की तरफ से उन्हें सशर्त सहयोग का वादा किया गया। तेलंगाना विधेयक पर सरकार ने भाजपा के सभी संशोधन तो माने ही, साथ ही सरकार ने इस बात की सहमति दी है कि वह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की प्रतिष्ठा का सबब बने भ्रष्टाचार विरोधी विधेयकों को हड़बड़ाहट में पारित कराने की कोशिश नहीं करेगी। अगले हफ्ते तेलंगाना और उसके बाद आखिरी हफ्ते में सिर्फ रेलवे लेखानुदान और अंतरिम बजट ही पारित कराया जाएगा।

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    भाजपा को मनाने और सीमांध्र व तेलंगाना के नेताओं की ज्यादातर बातें मानने के बावजूद सदन से विधेयक पारित कराने पर अभी खासी महाभारत बाकी है। इसके संकेत केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भी मिल गए हैं। यद्यपि, तेलंगाना बनाने पर सीमांध्र के सांसदों पल्लम राजू, केएस राव, किशोर चंद्र देव ने कैबिनेट के बहिष्कार का फैसला किया था, लेकिन उन्हें मना लिया गया। इसके बावजूद हैदराबाद को संघशासित क्षेत्र बनाने पर तेलंगाना से आने वाले केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी के सशक्त विरोध पर तीनों सांसदों से उनकी तीखी झड़प हुई। मगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट ने हैदराबाद को 10 साल के लिए तेलंगाना-सीमांध्र की संयुक्त राजधानी पर ही मुहर लगाई, केंद्र शासित प्रदेश का विचार पीछे छोड़ दिया गया। अब तेलंगाना में 10 जिले होंगे।

    बंटवारे का फार्मूला

    तेलंगाना पर मंत्रिमंडलीय समूह ने 10 बड़े संशोधन दिए थे, जिनमें हैदराबाद को संघ शासित क्षेत्र बनाने का संशोधन खारिज हो गया है। कुरनूल और अनंतपुर दोनों बड़े जिले अब सीमांध्र का हिस्सा होंगे। इसके अलावा तेलंगाना क्षेत्र में पड़ने वाले कृष्णा नदी कोलावरम परियोजना से जो गांव प्रभावित होंगे, उनको सीमांध्र में रखा जाएगा। रायलसीमा और सीमांध्र के लिए अलग-अलग पैकेज होगा। चौदहवां वित्त आयोग पिछड़ेपन और राजस्व की समीक्षा कर केंद्र को रिपोर्ट देगा। पुराना विधेयक सदन में पेश होगा और 32-33 संशोधन जोड़े जाएंगे और प्रस्ताव के बाद वोटिंग के आधार पर शामिल किए जाएंगे। आंध्र प्रदेश विधानसभा और परिषद से भी नौ हजार से ज्यादा सुझाव आए हैं, उनको को भी इसमें जोड़ा जाएगा।

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