किसानों की खुदकुशी पर SC ने जताई चिंता, कहा- गलत दिशा में भटक रही सरकार
समस्या से निपटने के लिए सरकार गलत दिशा में भटक रही है। अगर सही दिशा में प्रयास होगा, तो बहुत कुछ हासिल हो सकता है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की आत्महत्याओं पर चिंता जताते हुए कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है। किसान की मौत के बाद पीडि़त परिवार को मुआवजा दे देना समस्या का हल नहीं है। इसके बदले ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है।
समस्या से निपटने के लिए सरकार गलत दिशा में भटक रही है। अगर सही दिशा में प्रयास होगा, तो बहुत कुछ हासिल हो सकता है। कोर्ट ने सरकार से इस बाबत ठोस योजना तैयार कर पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को होगी।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिका में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा उठाया गया है। पीठ ने कहा कि किसान बैंक से कर्ज लेते हैं और नहीं चुका पाने पर आत्महत्या कर लेते हैं। समस्या का हल ये नहीं है कि किसान के मरने पर उसके परिवार को पैसा दे दिया जाए। सरकार को इसे रोकने के लिए आत्महत्या की परिस्थितियों को खत्म करना होगा। इसके लिए ठोस नीति बनानी होगी।
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केंद्र सरकार की दलील
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडीशनल सालिसिटर जनरल पी नरसिम्हन ने कहा कि किसानों के कल्याण के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू की गई हैं। इनमें 2015 की फसल बीमा योजना भी है। इससे आत्महत्या की घटनाओं में बहुत कमी आई है। हालांकि, उन्होंने कहा कि अन्य योजनाओं को भी प्रभावी बनाने की जरूरत है।
फसल की कीमत तय करे सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गन्ने के किसानों से कहा जाता है कि गन्ना उगाएं। किसान मिल में गन्ना बेचते हैं। कभी उन्हें पूरा पैसा मिलता है और कभी नहीं मिलता। कभी-कभी तो फसल की कीमत ही बहुत कम लगाई जाती है। किसानों की फसल की एक निश्चित कीमत तय होनी चाहिए।
यह है मामला
सुप्रीम कोर्ट गैरसरकारी संगठन सिटीजन रिसोर्स एंड एक्शन एंड इनीशिएटिव की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में आत्महत्या करने वाले गुजरात के 619 किसानों के परिवारों को मुआवजा दिए जाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका दायरा बढ़ाते हुए पूरे देश तक कर लिया है। याचिकाकर्ता के वकील कोलिन गोंजाल्विस ने शुक्रवार को कहा कि किसानों के लिए सरकार की योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन सवाल उन्हें लागू करने को लेकर है।