सुप्रीमकोर्ट ने दोषियों की अदालत में मौजूदगी की प्रार्थना ठुकराई
सुप्रीमकोर्ट ने फांसी की सजा पाए दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के दोषियों की अपील पर सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहने की गुहार ठुकरा दी।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने फांसी की सजा पाए दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के दोषियों की अपील पर सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहने की गुहार ठुकरा दी। कोर्ट ने प्रार्थना ठुकराते हुए कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है और उन्होंने ऐसा कभी नहीं सुना। अभियुक्तों की यहां क्या जरूरत है। सोमवार को दोषियों की ओर से ये मांग फांसी की सजा के खिलाफ अपील पर शुरू हुई सुनवाई के दौरान की गई। सोमवार से सुप्रीमकोर्ट में दोषियों की अपील पर नियमित सुनवाई शुरू हुई।
दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के चार दोषियों मुकेश, पवन, अक्षय और विनय को निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है जिसके खिलाफ चारो सुप्रीमकोर्ट पहुंचे हैं। सुप्रीमकोर्ट के आदेश से फिलहाल उनकी फांसी पर रोक लगी है। आज दो साल बाद अपीलों पर नियमित सुनवाई शुरू हुई। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ कर रही है।
पढ़ेंः सराफा व्यवसायी खटखटाएंगे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
सोमवार को मुकेश और पवन के वकील एमएल शर्मा ने बहस शुरू की। शर्मा ने कोर्ट से प्रार्थना की कि अभियुक्तों को अपील पर सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहने की इजाजत दी जाए। शर्मा ने कहा कि ये अंतिम अदालत है ऐसे में उनके मुवक्किल अदालत में चल रही सुनवाई देखना चाहते हैं। कोर्ट ने एक सिरे से मांग ठुकराते हुए कहा कि उन्होंने तो ऐसा कभी नहीं सुना। न ही ऐसा कोई नियम है कि अभियुक्त अपील पर सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद रहें। पीठ ने कहा कि अभियुक्तों की यहां क्या जरूरत है।
इससे पहले शर्मा ने अपील की मेरिट पर बहस करते हुए पीडि़ता के बयान और मामले पर सवाल उठाए। शर्मा अभियुक्त मुकेश और पवन की ओर से पेश हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि घटना के बाद पीडि़ता इस स्थिति में नहीं थी कि वह बयान दे पाती ऐसें में मजिस्ट्रेट के दर्ज बयान ठीक नहीं हैं। उन्होंने सिंगापुर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि उस रिपोर्ट के मुताबिक पीडि़ता का गर्भाशय ठीक स्थिति मे था ऐसे में ये आरोप कहां तक सहीं हैं कि अभियुक्तों ने पीडि़ता के जननांग में लोहे की राड डाली थी। क्योंकि ऐसा होता तो गर्भाशय को जरूर चोट पहुंचती। हालांकि कोर्ट इन दलीलों से बहुत सहमत नहीं दिखा। पीठ ने शर्मा से कहा कि वे मेडिकल रिपोर्ट और साक्ष्यों पर बहस करने से पहले मामले में एकमात्र चश्मदीद गवाह शिकायतकर्ता (पीडि़ता का मित्र) के बयानों का जवाब दें जिस पर निचली अदालत और हाईकोर्ट दोनों ही ने भरोसा किया है। उधर दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने दाखिल दस्तावेजों की जानकारी दी और संक्षिप्त में पूरा केस पेश किया। शुक्रवार को इस मामले में फिर बहस होगी।
पढ़ेंः निर्भया कांड के दोषियों की अपील पर होगी नियमित सुनवाई
16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में पैरा मेडिकल की छात्रा निर्भया (नाम बदला) सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई थी। दुष्कर्मियों के अमानवीय व्यवहार और चोटों के कारण बाद में उसकी मौत हो गई थी। इस कांड से पूरा देश हिल गया था और बाद में दुष्कर्म से जुड़े कानून में भी बदलाव कर उसे कठोर किया गया ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं का दोहराव न हो। साकेत की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सितंबर 2013 में चार दोषियों सजा सुनाई थी। जिस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 13 मार्च 2014 को मुहर लगा दी थी। एक आरोपी नाबालिग था जिस पर जुविनाइल जस्टिस एक्ट के तहत जुविनाइल बोर्ड में मुकदमा चला। वह अपनी सजा पूरी कर छूट चुका है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।