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    सूखे पर आंख नहीं मूंद सकती सरकार, राहत का मतलब है तुरंत राहतः SC

    By Monika minalEdited By:
    Updated: Thu, 07 Apr 2016 12:29 PM (IST)

    सूखे से तड़प रहे किसानों के लिए सुप्रीमकोर्ट मुखर होकर सामने आया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दो टूक शब्दों में कहा कि वह परिस्थितियों पर आंखे मूंदे नही रह सकती। कोर्ट ने सरकार को तत्काल कदम उठाने की नसीहत दी।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सूखे से तड़प रहे किसानों के लिए सुप्रीमकोर्ट मुखर होकर सामने आया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दो टूक शब्दों में कहा कि वह परिस्थितियों पर आंखे मूंदे नही रह सकती। कोर्ट ने सरकार को तत्काल कदम उठाने की नसीहत दी।

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    कोर्ट ने कहा कि केंद्र इस परिस्थिति से सबसे अच्छी तरह निबट सकता है। प्रभावित लोगों तक देरी से राहत पहुंचने पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि राहत का मतलब है तत्काल राहत न कि एक दो साल बाद।
    कोर्ट ने सूखा प्रभावित लोगों की स्थिति पर चिंता जताते केंद्र सरकार को गुरूवार तक मनरेगा संबंधी फंड और योजनाओं का ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया है।

    ये निर्देश बुधवार को न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने नौ राज्यों में मनरेगा व जनकल्याण की अन्य योजनाएं ठीक से लागू कराने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। ये जनहित याचिका स्वराज अभियान संस्था ने दाखिल की है। याचिका में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ को सूखा प्रभावित बताते हुए राहत उपलब्ध कराने की मांग की गई है।

    मराठवाड़ा और बुंदेलखंड देखिये
    कोर्ट ने कहा कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सूखे की स्थिति नहीं है। केंद्र इस स्थिति से सबसे अच्छी तरह निबट सकता है। कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद से कहा कि मराठवाड़ा और बुंदेलखंड को देखिये ये नहीं कह सकते कि वहां सूखे जैसे हालात नहीं हैैं। पीठ ने कहा कि इस मसले पर बहस की जरूरत नहीं है, राहत पहुंचाने की जरूरत है।

    पिंकी आनंद ने कहा कि केंद्र जितनी राहत पहुंचा सकता है पहुंचाई है और पहुंचाई जा रही है। केंद्र की ओर से मनरेगा आदि जनकल्याणकारी योजनाओं का ब्योरा दिया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि अभी तक आप समझ नहीं पाए कि हम किस मुद्दे पर विचार कर रहे हैैं।

    कोर्ट सूखे के मामले पर सुनवाई कर रहा है न कि मिड डे मील और दूसरी सरकारी योजनाओं का मूल्यांकन करने के लिए बैठे हैैं। वे जानना चाहते हें कि सरकार सूखा प्रभावित लोगों के लिए क्या कर रही है और क्या करेगी। सरकार का जवाब कानून पर आधारित होना चाहिये। इस पर पिंकी ने कोर्ट से जवाब के समय मांगा। पीठ ने कहा कि सरकार मौजूदा हालात पर ध्यान दे। कोर्ट सूखा प्रभावित लोगों के लिए चिंतित है और सोच रहा है कि उन्हें कैसे मदद पहुंचाई जाए।

    मनरेगा के बकाये पर भी तल्ख अदालत
    कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि मनरेगा के तहत राज्यों को कितना पैसा दिया गया है। पीठ ने कहा कि केवल कहना काफी नहीं होगा जो कहा जाए उसका आधार भी होना चाहिए। पिंकी ने बताया कि 12000 करोड़ रुपये मनरेगा के तहत राज्यों को दिए जा रहे हैं। कोर्ट ने फिर सवाल किया कि ये पैसे पूरे देश के लिए हैैं या फिर सिर्फ सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए। मनरेगा में कितना पैसा देना अभी बकाया है और केंद्र कब तक उसे दे देगा। पिंकी आनंद ने बताया कि 8291 करोड़ रुपये अभी देना बाकी है।

    जिस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर हालात यही रहे तो राज्य मनरेगा के तहत काम देना बंद कर देंगे। राज्य कह देगे कि उनके पास पैसा नहीं है। पिंकी ने कहा कि 2723 करोड़ रुपये सूखा प्रभावित राज्यों को दिये जाएंगे। इस पर पीठ ने कहा कि केंद्र को अभी 8000 करोड़ रुपये मनरेगा का बकाया देना है ये तो करीब 20 फीसद बैठता है।

    कोर्ट ने कहा कि सरकार क्या लोगों से ये कहेगी कि तुम पहले काम करो हम तुम्हें पैसा बाद में देंगे। पीठ ने कहा कि सरकार कहती है कि मनरेगा में 100 दिन का काम देंगे। कैबिनेट 150 दिन का काम देने की बात कहती है और कुछ राज्य 200 दिन की बात करते हैं, लेकिन जबकि रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि सिर्फ 46 दिन का काम ही वास्तव में दिया जा रहा है। ऐसे तो सरकार 50 दिन तक पहुंच पाएगी 100 दिन तक नहीं पहुंच सकती। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वो एक सप्ताह में बकाया दे।

    राहत का मतलब है तुरंत राहत
    कोर्ट ने कहा कि राहत तुरंत पहुंचाई जाती है न कि एक साल बाद। पीठ ने कहा कि कई जगह पारा 45-46 के पार पहुंच गया है। लोगों के पास पीने का पानी नहीं है। ऐसे में अगर 6 से 8 महीने बाद राहत पहुंचती है तो किस काम की। कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री राहत कोष से हजारों करोड़ की राहत का एलान किया जाता है और वो पैसा दो तीन साल बाद पहुंचता है जिसका कोई मतलब नहीं रह जाता। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह गुरुवार तक हलफनामा दाखिल कर मनरेगा से संबंधित फंड और योजनाओं का सारा ब्योरा पेश करे।

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