एक लाख करोड़ में बिके सोलह कोयला ब्लॉक
कोयला ब्लॉकों की नीलामी जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे साबित होता जा रहा है कि सरकार का यह फैसला राज्यों को मालामाल करने जा रहा है।
नई दिल्ली । कोयला ब्लॉकों की नीलामी जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे साबित होता जा रहा है कि सरकार का यह फैसला राज्यों को मालामाल करने जा रहा है। साथ ही तीन वर्ष पहले कोयला ब्लॉक आवंटन पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भारी गड़बड़ी की आशंका वाली बात भी सही साबित हो रही है। पिछले छह दिनों के भीतर 16 कोयला ब्लॉक नीलाम हुए हैं। इनसे एक लाख करोड़ रुपये का राजस्व हासिल होने की उम्मीद है। यह सारी रकम राज्यों के खाते में जाएगी।
कोयला सचिव अनिल स्वरूप का कहना है कि कंपनियां जिस तरह से ब्लॉक खरीदने के लिए उत्साह दिखा रही हैं, उससे अभी तक गरीब समझे जाने वाले लेकिन खनिज संपदा से भरपूर राज्यों का कायाकल्प हो सकता है। साथ ही बिजली क्षेत्र के लिए रिवर्स बिडिंग (अधिकतम बोली लगाकर उससे सबसे कम बोली लगाने की प्रक्रिया) का सरकार का फैसला भी सही साबित हो रहा है। स्वरूप का कहना है कि अभी तक जितने कोल ब्लॉक बिजली कंपनियों ने निविदा के जरिये हासिल किये हैं, उससे देश में बिजली शुल्क में 37,000 करोड़ रुपये की संयुक्त तौर पर कमी आएगी। कई राज्यों में बिजली की दरें कम होंगी। इसकी वजह है कि सरकार ने यह शर्त लगाई है कि अगर कोयला कम दर पर खरीदेंगे तो उससे बनने वाली बिजली भी सस्ती बेचनी होगी।
नीलामी के पहले चरण में जिंदल पावर, हिंडाल्को, अल्ट्राटेक जैसी कंपनियों ने 16 कोयला ब्लॉक खरीदने में सफलता हासिल की है। ई-ऑक्शन के जरिये इनकी कुल 83,662 करोड़ रुपये की कीमत लगाई गई है। इसके अलावा 12,801 करोड़ रुपये की राशि बतौर रॉयल्टी राज्यों को मिलेगी। मध्य प्रदेश को 39,900 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ को 26,435 करोड़ रुपये, झारखंड को 14,498 करोड़ रुपये, बंगाल को 13,210 करोड़ रुपये, महाराष्ट्र को 1,819 करोड़ रुपये और उड़ीसा को 607 करोड़ रुपये मिलेंगे।
कैसे फायदे में रहेंगे बिजली ग्राहक
तय फार्मूले के मुताबिक बिजली प्लांट को आवंटित होने वाले कोल ब्लॉकों के लिए कोयले की एक उच्चतम कीमत सरकार ने तय की है। इसे उस इलाके में बिजली और कोयले की लागत के आधार पर तय किया गया है। मान लीजिए एक ब्लॉक के लिए कोयले की कीमत 1,000 रुपये प्रति टन तय की गई है। कंपनियों को इससे कम बोली लगानी होगी। अगर किसी कंपनी ने 800 रुपये प्रति टन की बोली लगाकर इसे हासिल किया तो 200 रुपये प्रति टन का फायदा उसे बिजली की दर घटाकर आम जनता को देना होगा।
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