Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    देर से सही लेकिन राहुल जाएंगे कश्मीर

    By Edited By:
    Updated: Sun, 21 Sep 2014 08:51 PM (IST)

    कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपने उपाध्यक्ष की छवि चमकाने की चुनौती से दो-चार है। पार्टी पर जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ की त्रासदी के समय नदारद रहे राहुल गांधी की 'देर से मगर दुरुस्त आमद' कराने की जिम्मेदारी है। जानकारी के मुताबिक, राहुल जल्द ही राज्य में बाढ़ पीड़ितों का हालचाल लेने पहुंचेंगे। हाला

    Hero Image

    नई दिल्ली, सीतेश द्विवेदी। कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपने उपाध्यक्ष की छवि चमकाने की चुनौती से दो-चार है। पार्टी पर जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ की त्रासदी के समय नदारद रहे राहुल गांधी की 'देर से मगर दुरुस्त आमद' कराने की जिम्मेदारी है। जानकारी के मुताबिक, राहुल जल्द ही राज्य में बाढ़ पीड़ितों का हालचाल लेने पहुंचेंगे। हालांकि, वर्ष 2012 में खुद को कश्मीरी बता चुके राहुल गांधी के मौन पर खुद पार्टी में असंतोष है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जम्मू-कश्मीर में आई सदी की सबसे त्रासद बाढ़ के दौरान खामोश रहे राहुल गांधी की इमेज ठीक करने के लिए पार्टी एक बार फिर रणनीति बनाने में जुटी है। उपाध्यक्ष की राजनीतिक शैली से उपजे माहौल को संभालने के लिए पार्टी ने व्यापक तैयारियां की हैं। सूत्रों के मुताबिक राहुल के दौरे के साथ पार्टी की तरफ से भारी मात्रा में राहत सामग्री भी भेजी जाएगी। राज्य में पहुंचने वाली राहत सामग्री पर राहुल की छाप होगी।

    पार्टी की योजना राज्य के कुछ गांवों को गोद लेकर उन्हें आदर्श गांव के रूप में विकसित करने की भी है। पार्टी का मानना है कि इससे राज्य में पार्टी का जनाधार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

    दो साल पहले भी किया था दौरादेश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए राहुल पहले भी जम्मू-कश्मीर का दौरा कर चुके हैं। दो साल पहले देश के तमाम उद्योगपतियों को लेकर राहुल ने राज्य का दौरा किया था। राज्य में निवेश को लेकर माहौल बनाने और उद्योगपतियों की चिंता दूर करने के लिए राहुल उस समय टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा, आदित्य बिड़ला समूह के कुमार मंगलम बिड़ला सहित कई नामी गिरामी व्यापार जगत की हस्तियों के साथ कश्मीर आए थे। हालांकि, आगे किसी गंभीर प्रयास न होने के कारण राहुल की यह पहल महज प्रचार तक ही सीमित रह गई। एक वरिष्ठ और टीवी चैनलों पर पार्टी का पक्ष रखने को अधिकृत एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि राजनीति को पार्ट टाइम काम समझ रहे राहुल की इस शैली का खामियाजा असल में पार्टी को उठाना पड़ रहा है। उनका कहना था कि दस साल से जब देश में पार्टी की सरकार थी, राहुल खुद को स्थापित नहीं कर पाए। अब विपक्ष में रहते हुए इस 'छू के भाग जाने' की राजनीतिक शैली से कोई लाभ नहीं हासिल होगा।

    पढ़ें: विधानसभा चुनावों से भागते राहुल गांधी

    पढ़ें: जम्मू-कश्मीर त्रासदी के वक्त राहुल की गुमशुदगी पर सोशल मीडिया में चर्चा