अब्दुल हामिद ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की आर्टिलरी में मचा दी थी खलबली, उड़ाए थे 7 टैंक
भारत के एक जांबाज फौजी ने 1965 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में अकेले ही अजय माने जाने वाले अमेरिका निर्मित पाकिस्तान के 7 पैटन टैंक उड़ा दिए थे।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। परमवीर चक्र विजेता वीर कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद मसऊदी (अब्दुल हामिद) का नाम भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। 1965 में पाकिस्तान ने भारत में अस्थिरता पैदा करने की कोशिशों के मद्देनजर ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की थी। इसके तहत पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ और हमला करने के साथ-साथ दूसरे मोर्चों पर भी भारत को घेरने की योजना बनाई थी। इस दौरान पकड़े गए पाकिस्तान के घुसपैठियों से इस बात का खुलासा हुआ था कि कश्मीर पर कब्जा करने की मंशा से पाकिस्तान 30 हजार जवानों को गुरिल्ला वार का प्रशिक्षण दिया है। 8 सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने खेमकरण सेक्टर के उसल उताड़ गांव पर जबरदस्त हमला किया। उनके साथ पैदल सेना के साथ पैटन टैंक भी थे। वहीं भारतीय जवानों के पास उनसे मुकाबले के लिए थ्री नॉट थ्री रायफल और एलएमजी ही थीं। इसके अलावा थी गन माउनटेड जीप।
उन्होंने अकेले अपने ही दम पर 1965 में खेमकरण सेक्टर के उसल उताड़ गांव में पाकिस्तान से हुए युद्ध में उसके सात पैटन टैंकों को उड़ा दिया था। इससे पहले इन पैटन टैंकों को अजय समझा जाता था। पाकिस्तान सेना की तरफ से शामिल इन टैंकों के आगे भारतीय सेना बेहद कमजोर थी। इन टैंकों से भारत की पैदल सेना का मुकाबला बेहद मुश्किल था और हर मोड़ पर इनसे निकलने वाले गोले भारतीय सेना पर घातक प्रहार कर रहे थे। ऐसे में अब्दुल हामिद ने अपनी गन माउंटेड जीप से एक-एक कर सात टैंकों पर सटीक निशाना लगाकर पाकिस्तान की आर्टिलरी के पांव उखाड़ दिए थे। उनको निशाना बनाकर कई हमले किए गए। इनमें जीप पर सवार उनके अन्य साथी मारे गए लेकिन हामिद ने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार अपनी पॉजीशन बदलते रहे और घायल होने के बावजूद अचूक निशाने से पैटन टैंकों की कब्र खोदते चले गए।
पाकिस्तान की सेना में इसकी वजह से खलबली मच गई थी। वहीं एक के बाद एक ध्वस्त होते पाकस्तानी टैंकों से भारतीय जवानों का हौसला कई गुणा बढ़ गया था और वो पाकिस्तान की सेना पर कहर बरपा रहे थे। 9 सितंबर को एक पाकिस्तान के पैटन टैंक ने अब्दुल हामिद की जीप को निशाना बनाकर जोरदार हमला किया जो सटीक निशाने पर जाकर लगा और अब्दुल हामिद अपनी जीप के साथ कई फीट ऊपर तक उछल गए। इस बार दुश्मन का गोला ठीक उनकी जीप पर लगा था और बो बुरी तरह से जख्मी हो गए थे। कुछ देर के बाद उन्होंने रणभूमि में ही दम तोड़ दिया। 10 सितंबर को उनके वीरगति को प्राप्त होने की आधिकारिक सूचना दी गई थी।
अब्दुल हामिद ने 1965 की इस लड़ाई में भारतीय सेना की उसी सर्वोच्च परंपरा का निर्वाहन करते हुए अपने प्राण गंवाए जिसके लिए ये जवान जाने और पहचाने जाते हैं। उनकी बदौलत भारतीय सेना की जीत का मार्ग प्रशस्त हुआ था। इस अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें 16 सितंबर 1965 को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया। अब्दुल हामिद 4 ग्रेनेडियर के सिपाही थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि अब्दुल हामिद द्वारा उड़ाए गए अमेरिका में निर्मित पाकिस्तान के पैटन टैंकों की अमेरिका की दोबारा समीक्षा करनी पड़ी थी। इसकी वजह ये भी थी कि इन टैंकों के सामने गन माउंटेड का कोई मुकाबला नहीं था। इसके बावजूद हामिद ने इस बात को गलत साबित कर दिया था।
वीर अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई 1933 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता दर्जी थे लिहाजा फौज में भर्ती होने से पहले उन्होंने भी इसी काम से अपना गुजारा किया था। 27 दिसंबर 1954 को हामिद भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। इसके बाद उनकी तैनाती 4 ग्रेनेडियर बटालियन में कर दी गई। उन्होंने अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं। हामिद चीन के साथ हुए युद्ध के दौरान भी 7वीं इंफेंट्री ब्रिगेड का हिस्सा थे। इस ब्रिगेड ने ब्रिगेडियर जॉन दलवी के नेतृत्व में नमका-छू के युद्ध में चीन की सेना से लोहा लिया था।
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