बना रहेगा प्रशांत किशोर का राज्यमंत्री का दर्जा
कोर्ट के नकारात्मक रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील शांतनु सागर ने याचिका वापस ले ली।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सलाहकार प्रशांत किशोर का पद और राज्यमंत्री का दर्जा कायम रहेगा। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी नियुक्ति और राज्यमंत्री दर्जे के खिलाफ जनहित याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया।
प्रशांत किशोर को बिहार सरकार ने 21 जनवरी, 2016 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सलाहकार (कार्यक्रम क्रियान्वयन) नियुक्त किया था। बिहार के कटिहार जिले के रहने वाले राजेश कुमार जायसवाल ने प्रशांत किशोर की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने शुक्रवार को जनहित याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका क्यों दाखिल की है, वे हाई कोर्ट क्यों नहीं गए। कोर्ट ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री किसी को भी अपना सलाहकार नियुक्त कर सकता है यह उसका विवेकाधिकार है। कोर्ट के नकारात्मक रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील शांतनु सागर ने याचिका वापस ले ली।
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कोर्ट ने याचिका वापस लेने के कारण इसे खारिज किए जाने का आदेश दिया। इससे पहले याचिका पर बहस करते हुए शांतनु ने कहा कि प्रशांत किशोर की नियुक्त का आदेश रद किया जाए। बिहार सरकार ने उन्हें मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया है और राज्यमंत्री का दर्जा और सुविधाएं दी हैं जो कि गलत है। उन्होंने कहा कि राज्यमंत्री को संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत नियुक्ति के समय पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है, जो कि प्रशांत किशोर ने नहीं ली है। उनके समक्ष बहुत सी जरूरी फाइलें आएंगी। इसके अलावा मंत्री अगर छह महीने के भीतर किसी सदन का सदस्य नहीं चुना जाता तो उसे पद से हटना पड़ता है। इस हिसाब से प्रशांत किशोर को भी पद से हटना चाहिए।
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वकील ने यह भी कहा कि जिस उद्देश्य के लिए प्रशांत किशोर की नियुक्ति हुई थी वह उद्देश्य विफल हो रहा है क्योंकि उस काम के लिए वे न तो ऑफिस में बैठते हैं और न ही मीटिंग करते हैं। याचिका मे कहा गया था कि संविधान के मुताबिक मंत्रियों की संख्या सदन की संख्या की 15फीसद तक हो सकती है। प्रशांत किशोर को सलाहकार नियुक्त कर राज्यमंत्री का दर्जा देकर सरकार ने परोक्ष रूप से उस नियम का उल्लंघन किया है। यह भी कहा गया था कि सरकार अगर किसी बाहरी व्यक्ति को सलाहकार नियुक्त करती है तो क्या उसे अपने अधिकारियों व ब्यूरोक्रेट की काबिलियत पर भरोसा नहीं है।
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