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    पीएम के रुख से भड़की भाजपा

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    Updated: Tue, 03 Sep 2013 10:25 PM (IST)

    नई दिल्ली [जाब्यू]। विपक्ष के प्रति सरकार के रवैये से पहले से ही उबल रही भाजपा को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब असहयोग का आधार दे दिया है। माना जा रह ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [जाब्यू]। विपक्ष के प्रति सरकार के रवैये से पहले से ही उबल रही भाजपा को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब असहयोग का आधार दे दिया है। माना जा रहा है कि भूमि अधिग्रहण को छोड़ किसी दूसरे महत्वपूर्ण विधेयक पर सरकार के लिए भाजपा को मनाना बहुत मुश्किल होगा। सशंकित प्रधानमंत्री ने हालांकि मंगलवार की रात ही लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और अरुण जेटली को बुलाकर उन्हें शांत करने की कोशिश शुरू कर दी। बहरहाल, विपक्ष फिलहाल सरकार को राहत देने के मूड में नहीं है।

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    पढ़े : भूमि अधिग्रहण विधेयक को गेमचेंजर मान रही कांग्रेस

    मानसून सत्र में सरकार का रुख मुख्य विपक्ष को अखर गया है। भाजपा की अंदरूनी बैठकों में कई बार इसकी झलक दिखाई दे चुकी है, जब कुछ सदस्यों ने ही पार्टी को सुझाव दिया था कि सहयोग की बजाय एक विपक्ष की तरह व्यवहार करना चाहिए। मंगलवार को तेवर तब और गरम हो गए, जब कोयला घोटाले पर बयान देने आए प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में विपक्ष के किसी सवाल का जवाब ही नहीं दिया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के खड़े होने के बावजूद उन्हें बोलने तक की अनुमति नहीं दी गई। पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी नकार दिया गया। राज्यसभा में बयान पर स्पष्टीकरण की परंपरा है लेकिन वहां नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली के सवाल अनसुने कर दिए गए।

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    पार्टी नेता रविशंकर प्रसाद और प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने प्रधानमंत्री के रुख पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि घोटाले के बाद सरकार जिस तरह ढिठाई दिखा रही है, उसे मंजूर नहीं किया जा सकता। रविशंकर ने कहा कि संसद चलाना विपक्ष की जिम्मेदारी नहीं है। सरकार को अगर सरकारी कामकाज निपटाने के लिए विपक्ष का साथ मिल रहा है तो जवाबदेही के सवालों पर सरकार को भी खरा उतरना होगा। विपक्ष का बात अनसुनी कर एकतरफा सहयोग की अपेक्षा करना गलत है। वहीं शाहनवाज ने सरकार पर लोकतंत्र की मर्यादा की हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने नियमावली का हवाला देते हुए कहा कि बयान देने के बाद कोई तत्काल सदन से बाहर नहीं जा सकता है। 'लेकिन प्रधानमंत्री बयान पढ़कर भाग गए।' उन्हें विपक्ष और जनता के सवालों का जवाब देना होगा कि कोयला घोटाले की फाइलें कहां गुम हो गईं, किसने गुम किया। शाहनवाज ने लोकसभा में सरकारी व्यवहार पर भी चर्चा की मांग कर दी।

    संकेत स्पष्ट है कि राजनीतिक मजबूरी के कारण भूमि अधिग्रहण विधेयक को रोकना तो संभव नहीं है। लेकिन सरकारी एजेंडे में शामिल दूसरे विधेयकों पर अब विपक्ष का साथ मुश्किल है। पेंशन विधेयक का रास्ता पहले ही कठिन है। हां, सरकार कोयला घोटाले पर विपक्ष को लड़ाई सड़क तक ले जाने का आधार दे दिया है। दूसरी तरफ खुद प्रधानमंत्री के स्तर से मामले को संभालने की कोशिश हुई। आडवाणी, सुषमा और जेटली को पीएम ने मुलाकात का न्योता दिया। इस मुलाकात में सरकार की कोशिश यह समझाने की होगी कि वह विपक्ष के साथ मिलकर काम करना चाहती है।

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