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    भूमि अधिग्रहण विधेयक को गेमचेंजर मान रही कांग्रेस

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    Updated: Fri, 30 Aug 2013 10:24 PM (IST)

    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। पिछले सात वर्षो से सहमति के अभाव में लटका पड़ा भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक लोकसभा से पारित होने के बाद उद्योग जगत में भले ही ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। पिछले सात वर्षो से सहमति के अभाव में लटका पड़ा भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक लोकसभा से पारित होने के बाद उद्योग जगत में भले ही निराशा है, लेकिन चुनावी लिहाज से कांग्रेस इसे पासा पलटने वाला [गेमचेंजर] मान रही है। लोकसभा में जिस तरह बहुमत के साथ यह विधेयक पारित हुआ, उससे मंगलवार को राज्यसभा से भी इस पर मुहर लगना लगभग तय है। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने इस नए कानून को अमलीजामा पहनाने के तरीकों और उसके नियमों पर काम भी शुरू कर दिया है।

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    पढ़े: भूमि अधिग्रहण को ही जटिल बना देगा नया कानून

    दरअसल, संप्रग के सबसे बड़े सियासी ट्रंप कार्ड माने जा रहे खाद्य सुरक्षा विधेयक के लागू होने में थोड़ा वक्त लगेगा और उसको लेकर अभी भी तमाम शंकाएं हैं। इस संसद सत्र में खाद्य सुरक्षा पर ही सरकार का सबसे ज्यादा जोर था और भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित हो सकेगा, इसकी ज्यादा उम्मीद भी नहीं थी। कारण यह है कि 2006 से ही यह विधेयक राजनीतिक सहमति के अभाव में लटका रहा। विधेयक के गठन में उद्योग जगत से लेकर सियासी और सामाजिक स्तर पर तमाम पेंच फंसाने वाली ताकतें रहीं हैं।

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के रसूख से जुड़े इस विधेयक को तैयार करने में चौतरफा दबावों और संतुलन को साधने में ग्रामीण विकास मंत्री पूरी तरह सफल रहे। यद्यपि, औद्योगिक जगत में इस विधेयक के प्रति निराशा है, लेकिन अपनी चुनावी राजनीति के लिहाज से कांग्रेस इसे बेहद सफल दांव मान रही है। एक-एक सांसदों वाले राजनीतिक दलों से भी रमेश ने विमर्श कर उनके सुझावों को माना या अपनी बात समझाने में कामयाब रहे। खासतौर से मुख्य विपक्षी दल भाजपा से लेकर वामदल तक बहुत ज्यादा मीन-मेख विधेयक में नहीं निकाल सके।

    पिछले लोकसभा चुनाव से पहले किसान कर्जमाफी योजना को कांग्रेस की सफलता के पीछे बड़ा कारक माना गया था। अब इस नए कानून से भी ज्यादा मुआवजे का फायदा किसानों को ही होगा। सरकार अपने इस विधेयक को किसानों और आश्रितों के हक में बताने में कामयाब रही। ग्रामीण क्षेत्रों में खासतौर से कांग्रेस चुनाव के समय इस कानून का ढिंढोरा पीटेगी। इसीलिए, उद्योग जगत की चिंताओं को जयराम रमेश ने सिरे से नकार दिया। सदन में कहा कि 'उद्योग जगत इस विधेयक को बहुत कठोर बता रहा है। साथ ही प्रगतिशील संगठन भी मेरी आलोचना कर रहे हैं। दोनों पक्ष बिल की आलोचना कर रहे हैं, इसलिए मैं बिल को सही मानता हूं।' इसके साथ ही जयराम ने यह भी साफ कर दिया कि यह विधेयक किसी एक पक्ष यानी उद्योग जगत के लिए नहीं लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह पूरे देश को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।

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