भूमि अधिग्रहण को ही जटिल बना देगा नया कानून
नई दिल्ली [जाब्यू]। सरकार ने चुनावी साल में राजनीतिक फायदे के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक में जो संशोधन किए हैं, उसका खामियाजा आने वाले दिनों में देश को औद्योगिक विकास की बलि देकर चुकानी पड़ सकती है। गुरुवार को लोकसभा में पारित इस विधेयक की वजह से न सिर्फ औद्योगिक परियोजनाओं की लागत में काफी वृद्धि होने की बात कही जा रही है
नई दिल्ली [जाब्यू]। सरकार ने चुनावी साल में राजनीतिक फायदे के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक में जो संशोधन किए हैं, उसका खामियाजा आने वाले दिनों में देश को औद्योगिक विकास की बलि देकर चुकानी पड़ सकती है। गुरुवार को लोकसभा में पारित इस विधेयक की वजह से न सिर्फ औद्योगिक परियोजनाओं की लागत में काफी वृद्धि होने की बात कही जा रही है, बल्कि बड़े परियोजनाओं के लिए जमीन लेने की पूरी प्रक्रिया के ही काफी जटिल होने की आशंका जताई जा रही है।
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रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने इस विधेयक पर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इससे रीयल एस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के समक्ष सबसे ज्यादा समस्याएं आएंगी। जमीन लेने के लिए कंपनियों को ज्यादा कीमत अदा करनी पडे़गी। इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के लिए लागत तीन से पांच फीसद तक बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ जमीन के सभी प्रकार के आश्रितों [मालिक के अलावा किरायेदार व वहां काम करने वालों] को नौकरी देने या उन्हें मुआवजा देने की प्रक्रिया काफी लंबी होगी। मामले न्यायालय में आसानी से लंबे खींचे जा सकेंगे। कम से कम 80 फीसद लोगों की मंजूरी लेने की प्रक्रिया भी काफी जटिल साबित होगी।
उद्योग चैंबर सीआइआइ का कहना है कि जमीन अधिग्रहण करने की लागत अब कंपनियों के लिए तीन से साढ़े तीन गुणा तक ज्यादा हो जाएगी। यह देश में औद्योगिक परियोजनाओं के रास्ते में एक बड़ी बाधा बनेगी।
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बहुफसली जमीन के अधिग्रहण पर पूरी तरह से रोक लगाए जाने से खनन उद्योग को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ेगा। जमीन लेने में इसके सामाजिक व पर्यावरणीय असर के अध्ययन को शामिल करने से पूरी प्रक्रिया कई वर्षो तक चलती रहेगी। जमीन का इस्तेमाल पांच वर्षो तक नहीं कर पाने की स्थिति में उसे असली मालिकों को लौटाने का प्रावधान भी उद्योग जगत को प्रभावित करेगा। इस प्रावधान की वजह से कंपनियों के लिए भावी विस्तार की नीति को बनाना मुश्किल होगा।
फिक्की के पूर्व अध्यक्ष आरवी कनोरिया का कहना है कि उद्योग जगत पहले से ही काफी बुरी स्थिति में है। इस पर अब भूमि अधिग्रहण के नए प्रस्तावित कानून को सहन करना मुश्किल होगा। फिक्की का कहना है कि अब देश में मैन्यूफैक्चरिंग करना ही दुश्वार हो जाएगा। प्राइस वाटरहाउस कूपर्स ने कहा है कि नया विधेयक सरकार पर भी बोझ बढ़ाएगा। क्योंकि जब औद्योगिक परियोजनाओं [खास तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर] की लागत बढ़ेगी तो उससे सरकार भी प्रभावित होगी। सरकारी-निजी साझेदारी [पीपीपी] से लगने वाली परियोजनाओं पर असर पड़ेगा। लागत बढ़ने से ग्राहकों से ज्यादा शुल्क भी वसूलना होगा।
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