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    'न्‍याय के लिए नहीं करना होगा इंतजार, 5 साल में मिलेगा इंसाफ'

    By Sanjay BhardwajEdited By:
    Updated: Mon, 06 Apr 2015 08:50 AM (IST)

    देश भर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित होने के बावजूद न्याय के इंतजार में पीढि़यां गुजर जाने का सिलसिला अब खत्म होने वाला है। मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में न्यायपालिका ने पांच साल में मुकदमे का निपटारा करने की समय सीमा तय कर दी

    नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। देश भर की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित होने के बावजूद न्याय के इंतजार में पीढि़यां गुजर जाने का सिलसिला अब खत्म होने वाला है। मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में न्यायपालिका ने पांच साल में मुकदमे का निपटारा करने की समय सीमा तय कर दी है।

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    भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने रविवार को बताया कि ट्रायल कोर्ट में पांच साल के भीतर मुकदमे का निपटारा कर लेने का फैसला लिया गया है। हालांकि, ऊंची अदालतों में सुनवाई के लिए कुछ और वक्त लग सकता है।

    सम्मेलन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं, किशोरों और वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े मुकदमों को प्राथमिकता दिए जाने का निर्णय लिया गया। जस्टिस दत्तू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हमारे न्यायाधीश दो साल के भीतर मुकदमों का फैसला सुना देने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। निर्भया केस सुप्रीम कोर्ट में लटके रहने पर उन्होंने कहा कि तय व्यवस्था में पहले पुराने मामले सुने जाते हैं। निर्भया का केस 2014 में सुप्रीम कोर्ट आया है, उसके पहले के मुकदमे भी लंबित हैं।

    कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि सम्मेलन बहुत अच्छा रहा। मुख्यमंत्रियों व मुख्य न्यायाधीशों ने तय किया है कि कोई भी विवाद होता है तो वे आपसी बातचीत से उसका हल निकालेंगे।

    समान चयन प्रक्रिया पर जोर

    तीन दिन के इस सम्मेलन में उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के चयन की समान प्रक्रिया अपनाए जाने पर जोर दिया गया। न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया तय करने का मसला सर्वसम्मति से देश के मुख्य न्यायाधीश पर छोड़ दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश इसके लिए एक कमेटी का गठन करेंगे, जो समान चयन प्रक्रिया के संबंध में सुझाव देगी।

    छुट्टियों में भी होता है काम

    मुकदमों का ढेर खतम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियों में कटौती की संभावनाओं पर जस्टिस दत्तू ने कहा कि न्यायाधीशों के काम के बारे में लोगों को सही जानकारी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट साल में 190 दिन काम करता है। लोग समझते हैं कि जज सिर्फ 190 दिन काम करते हैं, जबकि न्यायाधीश इस दरम्यान छुट्टियों में भी काम करते रहते हैं।

    समय पर विवाद दुर्भायपूर्ण

    जस्टिस दत्तू ने कहा कि गुड फ्राइडे पर सम्मेलन आयोजित करने को लेकर उनके सहयोगी कुरियन जोसेफ की आपत्ति दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह पारिवारिक विवाद जैसा है, जिसे हम सुलझा लेंगे। उन्होंने कहा कि मैं इस परिवार का मुखिया हूं। यदि कोई सदस्य मेरे ऊपर सवाल उठाता है, तो हम मिलकर इसका समाधान कर लेंगे। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को न्योता दिया गया था, लेकिन सिर्फ तीन शीर्ष न्यायाधीशों की उपस्थिति ही अनिवार्य थी।

    1865 नागरिकों पर एक जज

    न्यायपालिका के लिए वित्तीय स्वायत्तता की मांग करते हुए दत्तू ने कहा कि जहां फंड आवंटित करना सरकार का अधिकार है, वहीं न्यायपालिका को इसके खर्च का हक मिलना चाहिए। उन्होंने भारत में जजों को अन्य देशों के मुकाबले कम वेतन-भत्ते मिलने का भी मुद्दा उठाया। देश में 1865 नागरिकों पर एक जज है। ऐसे में श्रेष्ठ लोग इस पेशे में आएं, यह सुनिश्चित करना जरूरी है।

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