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    हुजूर, सुन लो अपील, 92 साल में मत भेजो जेल

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले पर 92 वर्ष के एक दोषी ने वृद्धावस्था का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट से समर्पण करने से छूट मांगी है।

    By anand rajEdited By: Updated: Wed, 15 Jun 2016 05:24 AM (IST)

    नई दिल्ली (माला दीक्षित)। ऑनर किलिंग में उम्र कैद की सजा पाए 92 वर्ष के एक दोषी ने सुप्रीम कोर्ट से जेल न भेजने की गुहार लगाई है। वृद्धावस्था का हवाला देते हुए उसने समर्पण करने से छूट मांगी है। दोषी ने सुप्रीम कोर्ट से जेल भेजे बगैर ही अपील पर सुनवाई करने का अनुरोध किया है। कोर्ट उसकी अर्जी पर सुनवाई के लिए राजी हो गया है।

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    छत्तीस साल पुराने अपराध के मामले में आज यह स्थिति इसलिए आई है क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपील पर फैसला सुनाने में 34 साल लगा दिए। इस बीच दो अभियुक्तों की मौत हो गई और एक की उम्र हो गई 92 वर्ष।

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    उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के 92 वर्षीय अभियुक्त पुत्ती के वकील दीपेश द्विवेदी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से अर्जी पर सुनवाई करने और समर्पण से छूट देने की बार-बार गुहार लगा रहे थे। उनकी बस एक ही दलील थी कि अभियुक्त 92 वर्ष का है और इस हालत में नहीं है कि वह समर्पण कर सके या उसे जेल भेजा जाए।

    वकील अर्जी पर शीघ्र सुनवाई की मांग कर रहे थे जबकि पीठ बराबर मामले को चैंबर जज के यहां लगाने की बात कह रही थी।द्विवेदी ने कहा कि अपराध 1980 का है। गत 24 फरवरी को हाईकोर्ट का फैसला आया है जिसमें अपील खारिज कर दी गई है।

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    हाईकोर्ट ने अभियुक्त की जमानत रद करते हुए उसे आगे की सजा भुगतने के लिए तत्काल हिरासत में लेने का आदेश दिया है। ऐसे में अगर कोर्ट ने अर्जी नहीं सुनी तो 92 वर्ष के बुजुर्ग को किसी भी समय गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है। अंत में पीठ ने अनुरोध स्वीकार करते हुए इसी सप्ताह अर्जी पर सुनवाई की मंजूरी दे दी। बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट का नियम है कि सजा के खिलाफ किसी की अपील तभी सुनी जाती है जब अभियुक्त ने समर्पण कर दिया हो और उसके जेल जाने का प्रमाण पत्र अपील के साथ संलग्न किया गया हो।

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    पुत्ती को भी यही करना था। तब ही उसकी अपील सुनी जा सकती है। पुत्ती ने अर्जी दाखिल कर समर्पण से छूट मांगी है और कोर्ट से बिना जेल भेजे अपील पर सुनवाई करने की गुहार लगाई है। सत्र अदालत ने त्वरित सुनवाई करते हुए दो वर्ष में फैसला सुना दिया था और तीनों अभियुक्तों को उम्र कैद की सजा दी थी।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपील पर फैसला आने में 34 साल लग गए। पुत्ती ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

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