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    न पंडित, न कचहरी, बस सादा कागज और सात जन्मों का अटूट बंधन

    By Rajesh NiranjanEdited By:
    Updated: Tue, 10 Mar 2015 09:21 AM (IST)

    जिले के आदिवासी समाज में कई परंपराएं अनूठी और आपसी विश्वास का अनूठा उदाहरण हैं। आदिवासी परंपराओं के बीच समाज के लोग एकत्रित होकर एक-दूसरे पर विश्वास की डोर के बूते बुन लेते हैं दो जिंदगियों को एक करने का ताना-बाना। एक सादे कागज पर शादी का लेनदेन और खर्च

    पिटोल [झाबुआ], [कुंवर निर्भय सिंह]। जिले के आदिवासी समाज में कई परंपराएं अनूठी और आपसी विश्वास का अनूठा उदाहरण हैं। आदिवासी परंपराओं के बीच समाज के लोग एकत्रित होकर एक-दूसरे पर विश्वास की डोर के बूते बुन लेते हैं दो जिंदगियों को एक करने का ताना-बाना। एक सादे कागज पर शादी का लेनदेन और खर्च तय हो जाता है। बिना नोटरी और शपथ पत्र के इस कागज पर अविश्वास कोई नहीं जता सकता। और तो और शादी के लिए फेरे करवाने के लिए कोई पंडित नहीं आता, बल्कि परिवार का दामाद ये जिम्मेदारी निभाता है।

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    शहरी चकाचौंध और दिखावे से दूर ठेठ ग्रामीण अंचल के टीलों-मंजरों पर इन दिनों विवाह के गीतों की गूंज ने ग्रामीण माहौल को खुशनुमा बनाया हुआ है।

    जिले के पश्चिमी छोर पर स्थित मप्र और गुजरात की सरहद पर बसे पिटोल क्षेत्र के आदिवासी इन दिनों समाज में चल रहे विवाह समारोह में व्यस्त व मस्त हैं। समाज के लोग संबंध तय हो जाने के बाद सामूहिक रूप से तय करते हैं कि उन्हें विवाह में कितना दहेज लेना है। जिले की आदिवासी परंपराओं में सामान्य वर्ग से उलट यह परंपरा है कि यहां वधु पक्ष को वर पक्ष दहेज देता है, जिसका निर्धारण परिवार की उपस्थिति में गांव के सरपंच व प्रतिष्ठित ग्रामीण मिलकर करते हैं।

    न स्टांप, न प्रमाणीकरण

    न कोर्ट कचहरी के स्टांप, न ही कोई प्रमाणीकरण। एक सादे कागज पर सबके बीच तय होता है दहेज व शादी का खर्च कि दोनों पक्षों में किसे क्या-क्या देना है। पिटोल के मकना गुंडिया के अनुसार मंडप में बैठकर घर का दामाद फेरे करवाता है। फेरे करवाने की सम्मान निधि दामाद को दोनों पक्षों द्वारा मिलकर दी जाती है। सोमवार को भी एक संबंध तय हुआ। जो संबंध तय कर रहे हैं, उसमें अपने गांव की बेटी गुजरात के गुंदीखेड़ा गांव के बेटे को दे रहे हैं। इसमें वर पक्ष 800 रुपये तथा वधु पक्ष 700 रुपये दामाद को देगा। हर खर्च का निर्धारण पूर्व से ही कर लेते हैं, जो सबके बीच बैठकर तय होता है। इसके बाद किसी भी प्रकार के लेन-देन पर विचार नहीं करते। तय खर्च में बदलाव होने पर संबंधित को दंडित करने का कार्य भील पंचायत करती है।

    खर्च में कर रहे कटौती

    तड़वी बच्चु गुंडिया [पिटोल] बताते हैं कि पहले मंगनी के वक्त 8 से 10 मटके महुए की शराब, 4 या 5 बकरे तथा चावल का खर्च होता था, लेकिन अब सिर्फ 500 रुपये में चाय-पानी कर एकत्रित लोग शादी की बुनियाद रख लेते हैं। मात्र 1500 रुपये एकत्रित कर पंच को देते हैं। उसे भी उसी वक्त सभी के बीच खर्च किया जाता है। यह खर्च भी दोनों पक्ष मिलकर वहन करते हैं।

    भांजगड़ी का मिलता है पैसा

    मकना भाई ने बताया कि विवाह को लेकर वर-वधू दोनों पक्षों के बीच जो मध्यस्थता करता है, उसे आदिवासी भाषा में भांजगडिय़ा कहते हैं। उस भांजगडिय़े को दोनों पक्षों द्वारा सम्मान निधि दी जाती है। यह राशि 5 हजार हजार तक होती है।

    गुजरात में दहेज कम

    गुजरात के दाहोद जिले के गुंदीखेड़ा गांव से संबंध तय करने मप्र के पिटोल गांव में आए सरपंच तेरसिंह भाई ने बताया कि उनके यहां दहेज की राशि 80 हजार रुपये है, जबकि यहां 1 लाख 30 हजार रुपये देना पड़ रहे हैं। पिटोल तड़वी बच्चु भाई ने बताया कि वे भी धीरे-धीरे दहेज राशि को कम कर रहे हंै। पहले 1 लाख 70 हजार लेते थे। 40 हजार कम कर दिए हैं। इससे दोनों परिवारों पर किसी प्रकार का अतिरिक्त बोझ न पड़े और यह दहेज रूपी दानव समाज से दूर हो जाए।

    [साभार: नई दुनिया]

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