महाराष्ट्र का असर पड़ सकता है बिहार पर भी
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच हुए अलगाव का असर बिहार में भी नजर आ सकता है। गठबंधन टूटने के अगले दिन लोजपा ने मांग कर दी कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से सीटों पर बातचीत शुरू हो जानी चाहिए।
पटना। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच हुए अलगाव का असर बिहार में भी नजर आ सकता है। गठबंधन टूटने के अगले दिन लोजपा ने मांग कर दी कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अभी से सीटों पर बातचीत शुरू हो जानी चाहिए।
हालांकि लोजपा को महाराष्ट्र में गठबंधन टूटने का अफसोस भी है। वैसे, अंदरूनी तौर पर लोजपा और भाजपा की दूसरी सहयोगी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को उम्मीद है कि महाराष्ट्र की घटना के बाद दोनों दलों को बिहार में अच्छा भाव मिलेगा। लोजपा और रालोसपा की मांग यह हो सकती है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा इनके लिए जदयू की कब्जे वाली सीटें छोड़ दे। पिछले विस चुनाव में भाजपा 102 सीट पर लड़ी थी। जदयू के कोटे में 141 सीटें थीं। बाद में तीन सीटें उम्मीदवार के साथ भाजपा को दी गई थी। अधिक सीटों की मांग मोल-भाव की गरज से हो सकती है। विस चुनाव में लोजपा के खाते में अधिक सीटों पर लड़कर कम सीटों पर जीतने का रिकार्ड दर्ज है।
2010 के विधानसभा चुनाव में राजद गठबंधन में लोजपा को 75 सीटें मिली थीं। सिर्फ तीन पर उसकी जीत हुई। तीनों विधायक जदयू में चले गए। उसके वोट प्रतिशत में 4.35 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी। यह 6.75 फीसद पर सिमट गया था। भाजपा से दोस्ती के बाद उसकी सेहत सुधरी। लोकसभा चुनाव में उसे सात में से छह सीटों पर कामयाबी मिल गई, जबकि रालोसपा पहली बार भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। तीन में तीन सीट पर उसकी जीत हुई।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि लोजपा और रालोसपा को लोकसभा की सीटों के अनुपात में अधिकतम 50 सीटें दी जा सकती हैं। भाजपा ने विधानसभा की 10 सीटों के उप चुनाव में दोनों दलों को इसी आशय का संकेत दिया। उसमें लोजपा को एक सीट दी गई। वह उसे भी गंवा बैठी। रालोसपा को कोई सीट नहीं मिली। वैसे, बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि अपने दम पर महाराष्ट्र में भाजपा की उपलब्धि कैसी रहती है।
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