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    महाराष्ट्र ही नहीं दिल्ली की सियासत भी बदलेगी

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    Updated: Sat, 27 Sep 2014 10:13 AM (IST)

    महाराष्ट्र में सियासी गदर का असर दूर तक होगा। चुनावी नतीजों के बाद सूबाई किले जहां ढहेंगे-बनेंगे, वहीं राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ेगा। महाराष्ट्र क ...और पढ़ें

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    नई दिल्ली (जागरण ब्यूरो)। महाराष्ट्र में सियासी गदर का असर दूर तक होगा। चुनावी नतीजों के बाद सूबाई किले जहां ढहेंगे-बनेंगे, वहीं राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ेगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशा में कुछ नए गठजोड़ बनने के संकेत स्पष्ट मिलने लगे हैं। कांग्रेस ने तो राकांपा पर भाजपा की गोद में खेलने का आरोप मढ़ ही दिया। दरअसल, लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पूरा गणित बदल दिया है। भाजपा अगर शिवसेना में नंबर दो की पार्टी नहीं रहना चाहती तो यही हाल राकांपा का है। दोनों दल अब यह तमगा हटाकर नंबर एक की लड़ाई में आना चाहते हैं। नजरें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर हैं। भाजपा व राकांपा दोनों ने इसी प्रत्याशा में बराबरी की सीटे मांगीं, क्योंकि मुख्यमंत्री पद पर दावा उसी का होता, जिसकी सीटें ज्यादा हों। सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने तो सर्वेक्षण कराया। इसके मुताबिक वह कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर भी सरकार बनाने के पास पहुंचने की स्थिति में है। बिहार के अनुभव और केंद्र में पूरी धमक के साथ आने से भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ था। शिवसेना सीटें छोड़ने को तैयार नहीं थी।

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    सीएम पद पर तो टस से मस नहीं हो रही थी। बाल ठाकरे के समय में हुआ 171 व 117 के फार्मूले को भाजपा ने खारिज किया। शिवसेना कुछ सीटें ज्यादा देने पर राजी भी हुई, पर भाजपा के अड़ने के पीछे लक्ष्य ज्यादा सीटें लाने का था। ठीक यही राकांपा-कांग्रेस के बीच हुआ। राकांपा जान रही थी कि कांग्रेस दबाव में है, हालत पस्त है, जरूरत उसे ज्यादा है, इसलिए सख्ती से सौदेबाजी हो रही थी। मगर कांग्रेस एक सीमा के आगे झुकने को तैयार नहीं हुई। राकांपा तब तक तो बातचीत करती रही, जब तक भाजपा-शिवसेना के गठबंधन का फैसला नहीं हुआ था। जैसे ही वह टूटा तो राकांपा ने देर नहीं लगाई। कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने तो कहा भी कि राकांपा के निर्णय से उन्हें हैरानी नहीं हुई। वह बदले हालात में भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं और उसका फायदा उठाना चाहते हैं।

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