Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शराब का कारोबार करना मौलिक अधिकार नहीं

    By Rajesh KumarEdited By:
    Updated: Mon, 03 Apr 2017 04:04 AM (IST)

    कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गो पर शराब की बिक्री के नुकसानदेह पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शराब का कारोबार करना मौलिक अधिकार नहीं

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। शराब का कारोबार करना मौलिक अधिकार नहीं है। रोजगार की आजादी का अधिकार शराब के कारोबार पर लागू नहीं होता क्योंकि शराब का कारोबार संवैधानिक सिद्धांत में व्यापार की श्रेणी से बाहर है। इसके अलावा रोजगार का अधिकार जीवन के अधिकार के बाद आता है। हाईवे पर पांच सौ मीटर के दायरे से शराब की दुकाने हटाने के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जीवन और रोजगार के अधिकार की व्याख्या करते हुए ये बात कही है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोर्ट की इस व्याख्या के गहरे मायने हैं। शराब बंदी को गैर कानूनी व रोजगार की आजादी के अधिकार के खिलाफ कहने वालों के लिए ये कानूनी जवाब हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा है कि राज्य के आबकारी नियमों में शराब की दुकानों का लाइसेंस जारी करने का सरकार को विवेकाधिकार दिया गया है। कोई भी व्यक्ति लाइसेंस पाने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। शराब का कारोबार चलाना मौलिक अधिकार नहीं है ये संवैधानिक सिद्धांत में व्यापार की श्रेणी से बाहर है। राज्य सरकार के आबकारी नियमों में शराब की दुकानों का कुछ संस्थाओं से निश्चित दूरी रखना तय है। ये तय करना सरकार का अधिकार है कि वह नियमों के तहत लाइसेंस देगी कि नहीं। कोई भी व्यक्ति नियमों का हवाला देकर लाइसेंस पाने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। शराब के व्यापार में राज्य को विशेष अधिकार प्राप्त है।

    यह भी पढ़ें: राधामोहन का CM नीतीश पर तंज, बिहार में 110 फीसद तक बढ़ी अवैध शराब की बिक्री

    कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गो पर शराब की बिक्री के नुकसानदेह पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण शराब पीकर गाड़ी चलाना है। संवैधानिक मूल्यों में जीवन के अधिकार को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करना संविधान में दिये गये जीवन के संवैधानिक अधिकार को संरक्षित करने का एक जरिया है।

    जीवन के अधिकार और रोजगार की आजादी के मौलिक अधिकार के बीच संतुलन बनाने की बात करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक तरफ लोगों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की रक्षा करना और सड़क का उपयोग करने वालों को शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों से बचाने की जरूरत है तो दूसरी ओर शराब कारोबार के व्यापारिक हितों की। कोर्ट ने कहा कि दूसरा हित पहले के बाद आयेगा। यानि पहले जीवन का अधिकार आता है और उसके बाद रोजगार का अधिकार आयेगा। कोर्ट ने कहा कि हाईवे के 500 मीटर दूरी तक शराब की दुकानों पर रोक का आदेश देकर न तो कोर्ट ने किसी नियम का उल्लंघन किया है और न ही कानून बनाने की कोशिश की है। कोर्ट ने लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ये आदेश दिया है।

    यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद पंजाब में हाईवे से हटे 1876 शराब ठेके

    comedy show banner
    comedy show banner