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    टुंडा के परिजनों को भगाने में लखवी ने की थी मदद

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    Updated: Sat, 24 Aug 2013 08:53 AM (IST)

    नई दिल्ली [प्रदीप कुमार सिंह]। मुंबई में दिसंबर, 1

    नई दिल्ली [प्रदीप कुमार सिंह]। मुंबई में दिसंबर, 1993 के ट्रेन धमाकों में टुंडा का नाम उजागर होने के बाद जब सुरक्षा एजेंसियां उसकी तलाश में थीं, तब लश्कर-ए-तैयबा उसके परिवार को देश की सीमा से सुरक्षित बाहर निकालने का प्लान बना रहा था। लश्कर कमांडर जकीउर रहमान लखवी ने टुंडा केपरिवार को बांग्लादेश के रास्ते पाकिस्तान पहुंचाने के लिए 4.80 लाख रुपये खर्च किए थे। इतना ही नहीं, जब बांग्लादेश से टुंडा का परिवार पाकिस्तान नहीं जा पा रहा था, तो लश्कर ने परिवार के सदस्यों को अपने यहां प्रत्यर्पित करवा लिया था।

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    छाती में दर्द की शिकायत के बाद टुंड एम्स में भर्ती

    पूछताछ में टुंडा ने खुलासा किया कि जनवरी, 1994 में पिलखुवा में पुलिस दबिश के बाद वह अपने घर पहुंचा था, लेकिन पुलिस दबिश की जानकारी मिलने पर वहां से चला गया और कुछ दिन रायबरेली में गुजारने के बाद बनारस होते हुए कोलकाता पहुंचा। वहां जकरिया नामक व्यक्ति ने टुंडा को सीमा पार कर बांग्लादेश पहुंचाने की जिम्मेदारी ली। रास्ते में सुरक्षाकर्मियों द्वारा रोके जाने पर दोनों ने उस गांव के निजामुद्दीन का नाम बताया। जिस पर उन्हें छोड़ दिया गया। निजामुद्दीन के घर रात बिताने के बाद सुबह खेतों के रास्ते वह बांग्लादेश की सीमा में दाखिल हो गए थे। बांग्लादेश रेंजर्स [बीडीआर] द्वारा रोकने पर जकरिया ने उन्हें 100 रुपये रिश्वत भी दी थी।

    अमृतसर से टुंडा ने ही भिजवाए थे विस्फोटक

    अनवर नाम से सऊदी अरब पहुंचा टुंडा

    टुंडा बांग्लादेश में राजशाही में रहने लगा। वहां अनवर नाम से टुंडा का पासपोर्ट बनाने में दिनाजपुर में रहने वाले जकरिया के ससुर अब्दुल मतीन ने मदद की। अनवर के नाम से अप्रैल, 1995 में टुंडा सऊदी अरब गया। जहां लश्कर के कोषाध्यक्ष जफर इकबाल तथा लश्कर चीफ हाफिज सईद के रिश्तेदार अब्दुल रहमान मक्की से उसकी मुलाकात हुई। टुंडा ने दोनों के सामने भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान में बसनेच्की इच्छा जताई। दोनों के कहने पर वह बांग्लादेशी पासपोर्ट पर ही सऊदी अरब से पाकिस्तान गया, जहां वह हाफिज सईद तथा जकीउर रहमान लखवी से मिला।

    बांग्लादेश से किया था टुंडा ने फोन

    सितंबर, 1995 में जकी उर रहमान लखवी के कहने पर हैदराबाद निवासी महमूद वहादिक ने टुंडा को 3 लाख रुपये दिए थे। लखवी ने भी टुंडा को 1.80 लाख रुपये दिए। टुंडा के लिए पाकिस्तानी पासपोर्ट भी मुहैया कराया गया। बांग्लादेश से टुंडा ने अपने बेटे को फोन कर परिवार समेत बांग्लादेश बुलाया।

    बांग्लादेश से आए अब्दुल हकीम नामक व्यक्ति ने उसके परिवार को सीमा पार करा टुंडा के पास पहुंचा दिया। टुंडा ने जकरिया के ससुर के माध्यम से परिवार के सदस्यों का पासपोर्ट बनवाया।

    परिवार के पाकिस्तान न जा सकने से परेशान टुंडा अप्रैल, 1996 में पाकिस्तान गया। मुरीदके स्थित लश्कर-ए-तयबा के मुख्यालय में उसके परिजनों के पासपोर्ट की व्यवस्था की गई। यहां वह लाहौर स्थित जल एवं ऊर्जा विकास प्राधिकरण के इंजीनियर मोउद्दीन उर्फ मुईन के संपर्क में आया। मुईन ने टुंडा को पाकिस्तान के एक सरकारी विभाग के उप निदेशक इमरान से मिलवाया। इमरान ने अपने संपर्को का इस्तेमाल कर टुंडा के पूरे परिवार को बांग्लादेश से पाकिस्तान में प्रत्यर्पित करवा दिया था।

    टुंडा के जेहाद प्रेम को देखकर ही जकरिया ने उससे अपनी 18 वर्षीय बेटी आशिमा की शादी कर दी। जकरिया भारत व बांग्लादेश की सीमा पार कराने का एक्सपर्ट था। टुंडा ने उसके संपर्को का फायदा आतंकी व विस्फोटकों की सप्लाई में किया।

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