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    दोहरी लाइनों पर बिजली से दौड़ेगी कोंकण रेल

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    Updated: Thu, 10 Oct 2013 05:12 AM (IST)

    देश के सबसे दुर्गम मार्गो पर करीब 750 किमी का सफर तय करने वाली कोंकण रेल को अब दोहरी लाइनों पर बिजली से दौड़ाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए सर्वेक्षण का काम एक माह में पूरा हो जाने की उम्मीद है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को कर्नाटक के मेंगलूर से जोड़ने वाली यह रेलवे लाइन सह्याद्रि पव

    मुंबई, [ओमप्रकाश तिवारी]। देश के सबसे दुर्गम मार्गो पर करीब 750 किमी का सफर तय करने वाली कोंकण रेल को अब दोहरी लाइनों पर बिजली से दौड़ाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए सर्वेक्षण का काम एक माह में पूरा हो जाने की उम्मीद है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को कर्नाटक के मेंगलूर से जोड़ने वाली यह रेलवे लाइन सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं और अरब सागर के बीच से होती हुई गुजरती है। बरसात के मौसम में पहाड़ी चट्टानें पटरी पर गिरने से अक्सर मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इसके बावजूद इस रेलमार्ग से हर महीने करीब 1200 ट्रेनें गुजरती हैं। विशेष अवसरों पर इस मार्ग से साल में करीब 500 अतिरिक्त ट्रेनें भी चलाई जाती हैं।

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    अ‌र्द्धसरकारी निगम कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन द्वारा संचालित इस रेलमार्ग का विद्युतीकरण भी अभी नहीं हो सका है। कॉरपोरेशन अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक भानुप्रकाश तायल के अनुसार, अब इस रेलमार्ग के दोहरीकरण के साथ-साथ इसके विद्युतीकरण पर भी विचार शुरू कर दिया गया है। ज्यादातर पहाड़ियों से गुजरने वाले इस रेलमार्ग को कई जगह पर पहाड़ी सुरंगों से गुजरना पड़ता है, तो कई जगह ऊंचे-ऊंचे पुलों से। यह पहाड़ी रेलमार्ग आजादी के 50 वर्ष बाद बनकर तैयार हो सका था। दोहरीकरण व विद्युतीकरण के लिए सर्वे शुरू हो चुका है। इसकी रिपोर्ट एक माह में आने की उम्मीद है। तायल के अनुसार, मार्ग दोहरीकरण पर करीब 15,000 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है, जबकि 750 किमी लंबे रेलमार्ग का विद्युतीकरण करने के लिए लार्सन एंड टुब्रो जैसी कुछ कंपनियां आगे आ रही हैं। कोंकण रेलवे प्रवक्ता ने बताया कि ये कंपनियां विद्युतीकरण में नि:शुल्क सहयोग कर अपने लिए कार्बन क्रेडिट जुटाना चाहती हैं। गौरतलब है कि कोंकण रेलमार्ग का दोहरीकरण होने से ट्रेनों की संख्या, रफ्तार और राजस्व तो बढ़ेगा ही, दक्षिण भारत से संपर्क सुगम हो जाएगा।

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