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सिंधु जल संधि टूटी तो भारत इस तरह करेगा पानी का इस्‍तेमाल

पाकिस्‍तान पर दबाव की रणनीति का असर अब दिखाई देने लगा है। सिंधु जल संधि के टूटने के डर से पाक तिलमिलाया हुआ है। भारत के पास सिंधु के पानी को इस्‍तेमाल करने की रणनीति है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 28 Sep 2016 10:53 AM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2016 05:27 PM (IST)
सिंधु जल संधि टूटी तो भारत इस तरह करेगा पानी का इस्‍तेमाल

नई दिल्ली (जेएनएन)। पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाने की रणनीति में अब भारत पूरी तरह से सफल होता जा रहा है। मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेने और सिंधु जल समझौते को भी रद करने पर भारत गंभीरता से विचार कर रहा है। लेकिन यदि भारत जल संधि रद करता है तो इसके पानी का उपयोग कहांं और किस तरह से करेगा ये एक सवाल है। लेकिन इसको लेकर भारत सरकार काफी आश्वस्त दिखाई दे रही है।

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जल संधि को लेकर पाकिस्तान ने अब वर्ल्ड बैंक का रुख किया है। इसकी वजह यह भी है कि इस संधि में वह भी एक पक्ष है। लेकिन अब सरकार ने इस मुद्दे पर अागे बढ़ने का मन बना लिया है। दरअसल, सिंधु जल संधि के दायरे में आने वाली तीन पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चेनाब के 20 फीसदी पानी पर भारत का हक है। फिलहाल आठ लाख एकड़ हिस्से का ही इस्तेमाल होता है, जबकि 13.4 लाख एकड़ हिस्से का इस्तेमाल किया जा सकता है।

पानी को स्टोर करने पर विचार

संधि के तहत भारत को पानी के स्टोरेज की इजाजत हासिल है। भारत पानी की 3.6 एमएएफ मात्रा स्टोर कर सकता है, लेकिन फिलहाल पानी स्टोर नहीं किया जाता है। लिहाजा स्टोरेज पर गौर किया जाएगा। संधि के दायरे में आने वाली तीन पूर्वी नदियों रावी, व्यास और सतलज पानी का करीब-करीब पूरा इस्तेमाल होता है। इन नदियों के पानी पर पाकिस्तान का कोई हक नहीं है। इस संधि में वर्ल्ड बैंक भी एक पक्ष है। पाकिस्तान का कहना है कि भारत सिंधु के पानी को स्टोर करना चाहता है और वो इसे संधि का उल्लंघन मानता है।

रुके प्रोजेक्ट दोबारा होंगे चालू

भारत ने झेलम नदी पर रुके हुए तुलबुल प्रोजेक्ट को भी दोबारा शुरू कर जल्द पूरा किया जाएगा। पाकिस्तान की आपत्तियों के बाद भारत ने इस प्रोजेक्ट को बरसों पहले अपनी ओर से टाल दिया था। मोदी सरकार ने फैसला किया है कि इस फैसले पर अब दोबारा गौर होगा। तीन डैमों का काम भी तेज किया जाएगा। चेनाब पर बनने वाले ये डैम हैं - पकलडुल, सावलकोट, बरसर। भारत चाहता है कि वूलर झील का पानी झेलम में जाने से पहले अक्टूबर से फरवरी के बीच रेगुलेट करने का इंतजाम होना चाहिए, ताकि कारोबार और टूरिजम पूरे साल चल सके।

भारत के लिए यह तुलबुल नैविगेशन परियोजना है पर पाकिस्तान में इसे वुलर बैराज के नाम से जाना जाता है। भारत ने वर्ष 1984 में जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी पर बैराज बनाने का प्रस्ताव रखा था। यह बैराज भारत में मीठे पानी की सबसे बड़ी झील वूलर के मुहाने पर बनाया जाना है। भारत की इस पर 439 फीट लंबा और 40 फीट चौड़ा बैराज बनाने की योजना है। इससे वह अधिकतम 30 लाख एकड़ फीट जल संचित कर पाएगा। सोपोर के बांदीपोरा में स्थित इस झील पर पाकिस्तान ने बैराज बनाने का विरोध किया था। उसका कहना है कि यह सिंधु समझौते का उल्लंघन है।

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बिजली बनाने की क्षमता बढ़ाने पर विचार

पश्चिमी नदियों के पानी से बनने वाली पनबिजली की क्षमता 18,600 मेगावॉट है। फिलहाल 3034 मेगावॉट उत्पादन के लिए कंस्ट्रक्शन हो चुका है। 2526 मेगावॉट के लिए कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। इसके अलावा 5846 मेगावॉट के लिए हरी झंडी मिलने की पूरी उम्मीद है।

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जल संधि से जम्मू कश्मीर को नुकसान

सरकार ने इस फैसले से जम्मू-कश्मीर की जनता को भी लुभाने की कोशिश की है। सरकारी हलकों में कहा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर की जनता को भी इस संधि से दिक्कत हो रही थी। वहां के सभी राजनीतिक दलों ने भी इस पर गौर की मांग की थी। उनका मानना था कि इससे सालाना 6000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।

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