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    सेना ने दिए संकेत, और कर सकती है म्यांमार जैसी कार्रवाई

    By Abhishek Pratap SinghEdited By:
    Updated: Wed, 10 Jun 2015 08:25 PM (IST)

    भारतीय सेना ने संकेत दिए हैं कि जैसे 4 जून को मणिपुर के चंदेल जिले में हमला करके सेना के 18 जवानों की जान लेने वाले उग्रवादियों को भारतीय सेना ने म्यांमार सीमा में दाखिल होकर उनके करतूत की सजा दी

    नई दिल्ली। भारतीय सेना ने संकेत दिए हैं कि जैसे 4 जून को मणिपुर के चंदेल जिले में हमला करके सेना के 18 जवानों की जान लेने वाले उग्रवादियों को भारतीय सेना ने म्यांमार सीमा में दाखिल होकर उनके करतूत की सजा दी, जरूरत पड़ने पर वैसी और कार्रवाई की जा सकती है। म्यांमार में हुई कार्रवाई का फुटेज जल्द ही जारी किया जाएगा।

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    म्यांमार टाइम्स के सूत्रों ने दैनिक जागरण को बताया कि पूरे मामले में म्यांमार की सेना को बेहतर तरीके से विश्वास में नहीं लिए जाने से वहां की सेकेंड लाइन की सेना डिमोरलाइज्ड है। यही कारण है कि वहां की सेना ने पूरी कार्रवाई पर कुछ भी नहीं कहा। हो सकता है ऐसा करने से कार्रवाई के दौरान बच निकले तकरीबन 100 आतंकवादियों को स्थानीय सुरक्षा एजेंसियां मार गिराती। हालांकि इस पर स्थानीय सेना कुछ भी नहीं कहना चाहती।
    म्यांमार में भारतीय सेना के स्पेशल पैरा कमांडोज ने दो अलग-अलग जगहों पर इन उग्रवादियों के ठिकाने पर हमला करके आतंकी हमले के दोषी करीब 38 उग्रवादियों को ढेर कर दिया। सेना के कमांडो ने यह कार्रवाई एक विशेष सूचना के आधार पर म्यांमार अफसरों से तालमेल बैठाकर की।

    45 मिनट तक चला ऑपरेशन

    सूत्रों के मुताबिक इस ऑपरेशन के लिए 20-20 कमांडोज की दो टीमें बनाई गई थीं। 45 मिनट तक ऑपरेशन जारी रहा। खास बात यह रही कि इस कार्रवाई में भारत को किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ। इस दौरान म्यांमार की सेना लॉजिस्टिक सपोर्ट दे रही थी। हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि मरने वाले उग्रवादियों की संख्या 30 से 50 हो सकती है। इस पूरे ऑपरेशन में भारतीय सेना को कोई नुकसान नहीं हुआ। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार सरकार को जानकारी उस वक्त दी गई, जब यह ऑपरेशन आधे से ज्यादा पूरा हो चुका था।

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    तड़के तीन बजे से ही शुरू हो गया था ऑपरेशन
    सोमवार देर रात ही सेना के हेलिकॉप्टर्स ने पैरा कमांडोज को म्यांमार के सीमा के अंदर एयरड्रॉप किया। जिसके बाद ऑपरेशन मंगलवार तड़के 3 बजे शुरू हो गया। हालांकि, भारतीय राजदूत इसके बारे में म्यांमार के विदेश मंत्रालय में उस वक्त बता पाए, जब मंगलवार सुबह तयशुदा वक्त पर उनके दफ्तर खुले। कमांडोज ने 13 घंटे के ऑपरेशन में दोषी उग्रवादियों को ठिकाने लगा दिया। कमांडोज म्यांमार के सात किमी अंदर तक घुस गए।

    इंटेलिजेंस के इनपुट्स के आधार पर कमांडोज नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) के कैंपों तक चुपचाप पहुंचे। कमांडोज को इन उग्रवादियों के कैंपों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों मीटर तक रेंग कर जाना पड़ा। तकनीकी एक्सपर्ट्स ने कन्फर्म किया कि आतंकी इन्हीं कैंपों में हैं। ड्रोन्स के जरिए उन पर कई घंटों से नजर रखी गई थी। इसके बाद, कमांडोज ने जो किया, उसकी आधिकारिक जानकारी सेना ने मंगलवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दी

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    ऑपरेशन में वायुसेना भी शामिल
    म्यांमार सीमा में धावा बोलकर 38 उग्रवादियों को मार गिराने की कार्रवाई में सेना के साथ वायुसेना ने मिलकर सफल अभियान चलाया। ऑपरेशन में ऐसे अभियानों के लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित पैरा कमांडो फोर्स के साथ हेलीकॉप्टरों और ड्रोन्स का भी इस्तेमाल किया गया। सूत्रों के मुताबिक, सेना और वायुसेना के इस संयुक्त अभियान में एमआई-17 हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया।

    क्या होते हैं पैराकमांडोज
    मणिपुर में हमला करने वाले उग्रवादियों के खिलाफ भारतीय सेना के पैराकमांडोज ने मिशन को अंजाम दिया। इस यूनिट में कुछ हजार स्पेशली ट्रेन्ड कमांडोज होते हैं। यह कमांडोज पैराशूट रेजिमेंट के हिस्सा हैं। इसमें स्पेशल फोर्सेज की सात बटालियंस शामिल हैं। ये कमांडोज नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के अहम हिस्सा हैं। इस यूनिट को बहुत सारे अशोक चक्र और अन्य बहादुरी के मेडल मिल चुके हैं।

    कई ऑपरेशंस को अंजाम दे चुके हैं ये कमांडोज
    ये कमांडोज हाईजैक और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में महारत रखते हैं। इस कमांडो यूनिट का निर्माण भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुई जंग के दौरान हुआ था। 1971 की जंग में ढाका पहुंचने वाली पहली यूनिट पैरा कमांडोज ही थे। 1999 के कारगिल के जंग में कई सफल मिशनों को अंजाम दिया। जून 2000 में सियेरा लियोन में इन कमांडोज ने गोरखा राइफल्स के 200 से ज्यादा सैनिकों को बचाया था। इन सैनिकों को विद्रोहियों ने बंदी बनाकर रखा था। श्रीलंका में लिट्टे से निपटने के लिए भेजी गई शांति सेना में भी इन कमांडोज की अहम भूमिका थी।

    ऑपरेशन के दो विकल्पों पर किया गया था विचार

    उग्रवादियों के खिलाफ सेना ने दो विकल्प चुने थे। पहला मिग-29 या सुखोई-30 से कैपों पर बम गिराना। दूसरा एमआइ-17 से कमांडो भेजकर कार्रवाई करना। पहले विकल्प में आम लोगों के नुकसान की आशंका के कारण दूसरे विकल्प को चुना गया। इस तरह कमांडो ने पूरे ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया ।

    क्या है एमआइ-17 हेलीकॉप्टर

    एमआइ-8 हेलीकॉप्टर को और विकसित कर उसे एमआइ-17 का रूप दिया गया। इस हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किसी ऑपरेशन के लिए या फिर रेस्क्यू के लिए किया जाता है। इस हेलीकॉप्टर को रूस से खरीदा गया था। चीन और वेनेजुएला इस हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ने के लिए करते हैं। इस हेलिकॉप्टर में दोनों तरफ मिनीगन्स लगे होते हैं। मिनीगन्स से एक मिनट में 4 हजार राउंड गोलियां फायर की जा सकती है। इसमें रॉकेट पॉर्ट्स भी लगे होते हैं। इस हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करगिल वार में भी किया गया था। इसके अलावा एमआइ-17 का इस्तेमाल श्रीलंकाई सिविल वार में श्रीलंकाई एयर फोर्स ने भी किया था।

    उग्रवादी गुटों को चीन से मिल रही मदद
    खुफिया रिपोर्टों के अनुसार उल्फा के फरार प्रमुख परेश बरुआ को माना जाता है कि एनएससीएन-के नेता एसएस खापलांग को पिछले साल मार्च में भारत के साथ हुए 14 साल पुराने संघर्ष विराम समझौते को तोड़ने के लिए राजी करवाया था। आरोप है कि बरुआ चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की शह पर काम करता है।

    खापलांग एवं बरुआ के बारे में माना जाता है कि वे प्राय: म्यामांर और चीन के युनान प्रांत के रूइली एवं कुनमिंग के बीच आते रहते हैं तथा चीनी अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में रहते हैं। कुछ दिनों पहले यह भी खबर आई थी कि भारत ने म्यांमार को एनएससीएन खपलांग गुट के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में रहे दोनों चीनी सैन्य अधिकारियों की टेप की गई बातचीत और उनके ठिकानों के बारे में जानकारी मुहैया कराई थी।

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