Move to Jagran APP

समान नागरिक संहिता की ओर बढ़े कदम, केंद्र सरकार ने आयोग से मांगी रिपोर्ट

विवादित समान नागरिक संहिता के लिए सरकार ने पहल शुरू की है। इस बाबत विधि आयोग को पत्र लिखकर इस पर सुझाव मांगा गया है।

By Manish NegiEdited By: Published: Sat, 02 Jul 2016 04:37 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jul 2016 09:58 AM (IST)
समान नागरिक संहिता की ओर बढ़े कदम, केंद्र सरकार ने आयोग से मांगी रिपोर्ट

नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। देश के सभी लोगों के लिए एक-सा कानून यानी समान नागरिक संहिता के लिए सरकार ने पहल शुरू की है। सरकार ने विधि आयोग से इस पर सुझाव मांगे हैं। पिछले साल अक्टूबर में पहली बार सरकार ने आयोग को इस मुद्दे पर विचार कर रिपोर्ट देने के लिए पत्र लिखा था। अभी हाल में सरकार ने आयोग को दोबारा पत्र लिखकर इसकी याद दिलाई है। यह हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रहा है। इसी वजह से संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद-44 में समान नागरिक संहिता की बात होने के बावजूद यह लागू नहीं हो पाया है। कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने दिसंबर, 2014 में भी संसद में इस बाबत कदम बढ़ाने की बात कही थी।

loksabha election banner

यूं गरमाई चर्चा

एक ईसाई व्यक्ति ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर ईसाइयों के तलाक अधिनियम को चुनौती दी थी। उसका कहना था कि ईसाई दंपति को तलाक लेने से पहले दो वर्ष तक अलग रहने का कानून है जबकि हिन्दू कानून और अन्य कानूनों में यह अवधि छह-छह महीने मिला कर कुल एक वर्ष की है। इस मामले में समान नागरिक संहिता की बात उठी थी और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस बारे में रुख साफ करने को कहा था। इसके बाद कोर्ट में मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों का मुद्दा आ गया। इससे फिर धर्म के आधार पर कानून में अंतर पर बहस छिड़ी और समान नागरिक संहिता की मांग उठने लगी है।

कोर्ट को पीड़ित को सुनना ही पड़ता है

इस बारे में कोर्ट में जनहित याचिकाएं आती रही हैं लेकिन कोर्ट उन पर यह कहते हुए विचार करने से मना करता रहा है कि कानून बनाना सरकार का काम है और कोर्ट सरकार को कानून बनाने का आदेश नहीं दे सकता। गत 7 दिसंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने वकील अश्वनी उपाध्याय की देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी। लेकिन अगर कोई पीडि़त कोर्ट पहुंचता है तो कोर्ट उसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। ईसाई तलाक कानून और मुस्लिम तीन तलाक के मामले में पीडि़त ही कोर्ट आए हैं।

क्या है समान नागरिक संहिता

विधि आयोग ने कभी समान नागरिक संहिता पर रिपोर्ट नहीं दी है लेकिन अलग-अलग धर्मो के विवाह और तलाक कानूनों पर आयोग की रिपोर्ट आती रही है। भविष्य में समान नागरिक संहिता लागू हुई तो अलग-अलग धर्मो के शादी, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार से संबंधित कानून स्वत: समाप्त हो जाएंगे और सभी धर्मावलंबियों पर यही कानून लागू होगा।

समान नागरिक संहिता के पक्ष में तस्लीमा, लैंगिक समानता के लिए बताया जरूरी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.