समान नागरिक संहिता के पक्ष में तस्लीमा, लैंगिक समानता के लिए बताया जरूरी
बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने समानता के आधार पर समान नागरिक संहिता को अपनाए जाने की पैरवी की है। उन्होंने कहा कि धार्मिक कानूनों को समाप्त कर लैंगिक समानता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है।
नई दिल्ली: बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने समानता के आधार पर समान नागरिक संहिता को अपनाए जाने की पैरवी की है। उन्होंने कहा कि धार्मिक कानूनों को समाप्त कर लैंगिक समानता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है।
तसलीमा ने यह भी कहा कि धर्म के आधार पर बना एक राष्ट्र कट्टरपंथी देश बन सकता है। धर्म लोकतंत्र और मानवाधिकारों के अनुकूल नहीं होता है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश मुक्ति संग्राम ने यह साबित कर दिया था कि द्विराष्ट्र का सिद्धांत गलत था। महिला उत्पीड़न पर काफी कुछ लिखने वाली 53 वर्षीय लेखिका ने कहा कि पुरातन धार्मिक कानूनों की वजह से हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है।
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उन्होंने कहा, 'दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में कानून धर्म पर आधारित हैं। अगर आपके पास धर्म पर आधारित कानून हैं तो महिलाओं के पास समानता का अधिकार नहीं होगा। हमारे पास समानता के आधार पर समान नागरिक कानून होना चाहिए। क्योंकि सभी धर्म महिलाओं के खिलाफ हैं।' स्वनिर्वासन में भारत में रह रही तसलीमा गुरुवार शाम परिचर्चा 'पेंगुइन स्पि्रंग फीवर' में बोल रही थीं।
लेखिका ने कहा, हिंदू महिलाओं को अपने भाईयों की तरह पैतृक संपत्ति में बराबरी देकर और शादी में समान अधिकारों से सशक्त बनाया गया है। लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू अभी भी पुराने कानूनों का ही पालन कर रहे हैं। इसी तरह भारत में मुस्लिम महिलाओं को समानता नहीं मिली है। वे धार्मिक कानूनों से बंधी हुई हैं।
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