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    गंगाधर की नगरी में गंगा मुक्ति का संकल्प

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    Updated: Sat, 12 Jul 2014 07:41 PM (IST)

    कुछ दृश्य सदा के लिए हो जाते हैं। ऐसे जिनकी स्मृति कभी मंद नहीं पड़ती। ऐसा ही दृश्य था गुरु पूर्णिमा पर। मीलों तक एक सा, श्रद्धा और संकल्प से पगा हुआ। शनिवार को जैसे ही सूरज ने आंखें खोलीं, देवप्रयाग से सीतामढ़ी आकर ठिठकी गंगा जागरण यात्रा काशी को चल पड़ी। दशाश्वमेध घाट पर शाम सात बजे आरती का समय नियत।

    वाराणसी। कुछ दृश्य सदा के लिए हो जाते हैं। ऐसे जिनकी स्मृति कभी मंद नहीं पड़ती। ऐसा ही दृश्य था गुरु पूर्णिमा पर। मीलों तक एक सा, श्रद्धा और संकल्प से पगा हुआ। शनिवार को जैसे ही सूरज ने आंखें खोलीं, देवप्रयाग से सीतामढ़ी आकर ठिठकी गंगा जागरण यात्रा काशी को चल पड़ी। दशाश्वमेध घाट पर शाम सात बजे आरती का समय नियत। रोज से अलग..गंगा को नमन के साथ ही उस दुर्दशा पर चिंतन भी। इसके पूर्व दिन भर बांहें पसारे पावन जल का हजारों भक्तों को इंतजार। सफर तो मात्र सौ किलोमीटर लेकिन भावनाएं गति को इतना मंद किए थीं कि समय पर पहुंचना मुश्किल। सूरज भी मानो अपने तेज से गंगा भक्तों की परीक्षा लेने पर उतारू लेकिन जोश के आगे उसे भी नतमस्तक होना पड़ा। हो भी क्यूं न..घाटों पर जाकर गंगा को नमन करने वालों के लिए आज गंगा सड़कों पर बह रही थीं।

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    मंत्री हो या अधिकारी..महिला हो या पुरुष..बच्चे हों या बूढ़े.सबमें बस एक ही ललक कि एक बार पावन मां के इस स्वरूप पर दो फूल चढ़ा लें.आरती उतार लें। समय भावनाओं पर भारी है। रथ रेंगता-रेंगता बढ़ता है। कुछ दर्शन करके रुक जाते हैं तो कुछ यात्रा के साथ जुड़ जाते हैं। काशी में प्रवेश करते-करते कारवां इतना बड़ा हो गया कि निगाहें पिछला सिरा तलाशने में असमर्थ। मड़ुवाडीह में प्रवेश करते ही कानों में गीत गूंजने लगे.जागरण की लहर चली है, सबको हमें जगाना है। शहर भर में बज रहा यह गीत लोगों का उत्साह और बढ़ा रहा। मैदागिन हो या लहुराबीर..नई सड़क हो या गुरुबाग.हर जगह जन सैलाब..कहीं शंखध्वनि तो कहीं मंत्रोच्चार.माहौल को पूरा भक्तिमय बनाए थे। सभी धमरें के लोग, सभी समुदायों के कलश की एक झलक के लिए आतुर। अस्सी से गोदौलिया के बीच तो मानो लघुभारत उतर आया। आंध्र के लोग परंपरागत वेशभूषा में पूजन कर रहे थे तो कहीं बंगाली समुदाय..कहीं केरल के लोग हैं तो कहीं मुस्लिम बंधु। दशाश्वमेध घाट भी था पूरा जगमग। फूलों की सजावट..सामने धीर-गंभीर गंगा..गंगापुत्र अपनी सजी हुई ठिठकी नावों के साथ लहरों पर डटे रहे। आरती में कन्याएं भी शामिल, ठीक उसी तरह जैसे देव दीपावली व गंगा दशहरा में होता है। ठसाठस भरा घाट..आरती के समय अद्भुत नजारा। आरती समाप्त होते ही आतिशबाजी और फिर आकाश में उड़ते हुए दीयों का नजारा..गंगा में दीप नहीं प्रवाहित किये गये..क्योंकि जिसके जल को पावन करने का अभियान ही छिड़ा हो उसमें और गंदगी कैसे डाली जाए। आरती के बाद स्वर लहरियां कानों में मिठास घोलने लगीं। जैसे-जैसे रात चढ़ी माहौल मनमोहक हो चला। सभी संकल्पित थे कि इस आंदोलन को अब क्रांति रूप देने की जरूरत है। काशी ने प्रण ले लिया कि मां की दुर्दशा को दूर करने के लिए वह कुछ भी करेगी। यात्रा अब रात यहीं ठहरेगी और फिर रविवार को सुबह मीरजापुर के लिए प्रस्थान करेगी। वहां भी पूरी तैयारी है यात्रा के स्वागत की।

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