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    शौचालय नहीं तो 11 साल की किशोरी ने 4 दिन नहीं खाया खाना

    By Rajesh NiranjanEdited By:
    Updated: Fri, 24 Apr 2015 10:07 PM (IST)

    जिले के किर्रोद गांव में कक्षा-6 की छात्रा तारा ने पिछले 4 दिन से सिर्फ इसलिए अन्ना-जल त्याग दिया, क्योंकि उसके घर में शौचालय नहीं था। उसे शौच के लिए ...और पढ़ें

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    बीना [मध्यप्रदेश], [सचिन तिवारी] । जिले के किर्रोद गांव में कक्षा-6 की छात्रा तारा ने पिछले 4 दिन से सिर्फ इसलिए अन्ना-जल त्याग दिया, क्योंकि उसके घर में शौचालय नहीं था। उसे शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। परिवार गरीब है, इसलिए पहले तो शौचालय निर्माण में खर्च से डरकर पिता महेश बंसल उसकी बात की अनदेखी करते रहे, लेकिन जब बेटी ने शौचालय बनने पर ही खाना खाने की जिद की तो परिवार ने आनन फानन में बृहस्पतिवार को शौचालय का निर्माण शुरू करा दिया।

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    तारा के बड़े भाई रामकुमार बंसल (22 वर्ष) ने बताया कि तीन भाइयों के बीच तारा उनकी इकलौती बहन है। उसकी जिद को पूरा करने के लिए शौचालय निर्माण कार्य शुरू करा दिया है। पिताजी भी मान गए हैं, आज तारा ने खाना खा लिया है।

    फिर मैंने भी बनवाने की जिद की

    घर में शौचालय नहीं है। बाहर खेतों में जाओ तो सुबह शाम लड़कों की घूरती हुई नजरें। एक सप्ताह पहले स्कूल में आए तरुण संस्कार केंद्र वालों ने बताया कि खुले में शौच जाने से ही बीमारियां होती हैं। इसके बाद मैंने ठान लिया कि अब पापा से कहूंगी कि घर में भी शौचालय बनवा दो।

    जब उन्होंने मेरी बात नहीं मानी तो मैंने खाना पीना छोड़ दिया। 4 दिन तक कुछ नहीं खाया। मम्मी पापा तो शादी में बाहर गए हैं, लेकिन तीनों भाइयों ने मेरी पीड़ा को समझा और पापा के आने से पहले ही शौचालय के गड्ढे (सेप्टिक टैंक) का निर्माण कार्य शुरू कर दिया। पापा-मम्मी भी शौचालय निर्माण कराने के लिए मान गए हैं। अब मैं अपनी सहेलियों को भी घर में शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करूंगी।

    बीओआरएल चला रहा है अभियान

    भारत ओमान रिफाइनरी द्वारा सोशल कॉर्पोरेट लायबिलिटी (सीएसआर) के तहत एनजीओ तरुण संस्कार के जरिए शौचालय को लेकर लोगों को प्रेरित करने के लिए जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। तरुण संस्कार की सदस्य आरती ने ही शासकीय माध्यमिक स्कूल किर्रोद में छात्राओं को खुले में शौच से होने वाले नुकसान के बारे में बताया था। एनजीओ द्वारा काफी समय से गांव में जागरुकता रैली एवं कार्यक्रम आयोजित किए गए, लेकिन किसी ने पहल नहीं की।

    [साभार: नई दुनिया]

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