दिल्ली में चुनाव या सरकार, भाजपा में मंथन जारी
हरियाणा विधानसभा के चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत और महाराष्ट्र के जोरदार प्रदर्शन के बाद भाजपा यदि दिल्ली में भी जोड़तोड़ की सरकार बनाने के बजाय चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय करती है तो इसमें कुछ भी अचरज की बात नहीं होगी। लेकिन सूबे में भाजपा की सरकार बनने की संभावनाएं बिल्कुल खत्म हो गई
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। हरियाणा विधानसभा के चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत और महाराष्ट्र के जोरदार प्रदर्शन के बाद भाजपा यदि दिल्ली में भी जोड़तोड़ की सरकार बनाने के बजाय चुनाव मैदान में उतरने का निर्णय करती है तो इसमें कुछ भी अचरज की बात नहीं होगी। लेकिन सूबे में भाजपा की सरकार बनने की संभावनाएं बिल्कुल खत्म हो गई हों, ऐसा भी अभी नहीं हुआ है। कांग्रेस अथवा आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने की मुहिम चलाते आ रहे नेता अब भी सरकार बनाने का खम ठोक रहे हैं। समझा जा रहा है कि दिल्ली को लेकर भाजपा में शीर्ष स्तर पर अब भी मंथन जारी है। यही कारण है कि उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजी गई चिट्ठी पर भी कोई निर्णय नहीं हो पा रहा। ऐसे सियासी हालात में देखना यह महत्वपूर्ण है कि दिल्ली की सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है।
सरकार बनाने की मुहिम में जुटे भाजपा नेताओं की मानें तो जिस प्रकार महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें देकर नंबर एक पार्टी बनाया है, उसी प्रकार पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने भी भाजपा को नंबर एक पार्टी बनाया था। फर्क महज इतना है कि महाराष्ट्र में भाजपा को खुलकर समर्थन देने वाले तैयार हैं जबकि दिल्ली में ऐसा नहीं हुआ। यहां पर दूसरे दलों के विधायक अंदरखाने भाजपा को समर्थन देने की बात कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जब पार्टी महाराष्ट्र में अन्य दलों के सहयोग से सरकार बना सकती है तो दिल्ली में दूसरों के सहयोग से सरकार बनाने में क्या दिक्कत है। सच यह भी है कि कोई भी विधायक इतनी जल्दी चुनाव मैदान में नहीं जाना चाहता। यही वजह है कि दिल्ली में भाजपा की अगुवाई में सरकार बनाने की मुहिम अब भी जारी है। दूसरी ओर चुनाव कराने के पक्षधर नेताओं का कहना है कि अभी माहौल पूरी तरह भाजपा के पक्ष में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे के दम पर पार्टी दिल्ली में भारी जीत हसिल करेगी और पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाएगी। उनका यह भी कहना है कि महज चार विधायक कम होने के मद्देनजर पार्टी ने उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा सरकार बनाने का न्योता अस्वीकार कर दिया था। अब यदि फिर से ऐसा न्योता आता भी है तो उसे स्वीकार करने का कोई मतलब नहीं है। पार्टी पर जोड़तोड़ करने का आरोप लगेगा जो किसी भी प्रकार ठीक नहीं है।
उच्चपदस्थ सूत्रों की मानें तो सूबे में सरकार और चुनाव दोनों ही विकल्पों को लेकर मंथन अभी जारी है। यदि दिल्ली का कोई दमदार नेता शीर्ष नेतृत्व के सामने सरकार बनाने का मुकम्मल फार्मूला पश करने में कामयाब हुआ तो सरकार बनाने की पहल भी हो सकती है, अन्यथा सूबे के राजनीतिक हालात नए चुनाव के संकेत तो दे ही रहे हैं।
कांग्रेस जुटी चुनाव की तैयारी में
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली की सियासी तस्वीर अभी भले साफ नहीं दिखाई दे रही हो लेकिन सूबे के कांग्रेसी रणनीतिकार आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में मुस्तैदी से जुट गए हैं। दिल्ली में अपनी वापसी के लिए रणनीति के तरकश से हर सियासी तीन छोड़ने को तैयार कांग्रेस अपने कुछ पूर्व सांसदों को भी विधानसभा के चुनावी अखाड़े में उतारने पर विचार कर रही है ताकि ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती जा सकें। यदि ऐसा हुआ तो जाहिर तौर पर पिछले विधानसभा चुनाव में पराजित रहे कई पूर्व विधायकों को अपने टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है।
प्रदेश कांग्रेस की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिए। पार्टी की दलील यह है कि सूबे में सरकार बनने की कोई भी संभावना नहीं है। भाजपा के पास सरकार बनाने के लायक नंबर नहीं है। लिहाजा उचित यही है कि एक बार फिर से जनादेश हासिल किया जाए। पार्टी ने उन संभावनाओं को भी पूरी तरह खारिज कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में दोबारा आम आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए कोई सहयोग दे सकती है। पार्टी के जानकारों का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। अब उसके हासिल करने के दिन सामने हैं।
दिल्ली की जनता ने कांग्रेस को बुरी तरह पराजित किया लेकिन लोग यह भी देख रहे हैं कि बड़े-बड़े वादे कर कुर्सी हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार जिम्मेदारियों से घबराकर महज 49 दिनों में इस्तीफा देकर चली गई। दूसरी ओर राष्ट्रपति शासन के दौरान अपनी सत्ता चला रही भाजपा भी दिल्ली के लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही। ऐसे में राजधानी के लोग एक बार फिर से कांग्रेस की ओर देख रहे हैं। ऐसे नेताओं की एक दलील यह भी है कि हरियाणा में भाजपा द्वारा जाट को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से दिल्ली की कम से कम एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस के लिए लड़ाई आसान हो गई है। हरियाणा की सीमा से सटी विधानसभा की सीटों पर कांग्रेस जाटों के बीच अपनी पकड़ फिर से मजबूत कर सकती है।