मांझी बने दलितों के 'देवता', बोले..पंडित ही क्यों करें पूजा?
अपने अटपटे बयानों से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी एक बार फिर सुर्खियों में छा गए हैं। इस मर्तबा उन्होंने समाज में दलितों के साथ होने वाले ऊंच-नीच के व्यवहार पर आवाज बुलंद कर सुर्खियां बटोरी हैं।
नई दिल्ली। अपने अटपटे बयानों से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी एक बार फिर सुर्खियों में छा गए हैं। इस मर्तबा उन्होंने समाज में दलितों के साथ होने वाले ऊंच-नीच के व्यवहार पर आवाज बुलंद कर सुर्खियां बटोरी हैं।
जीतनराम मांझी ने साफ तौर पर कहा है कि ब्राह्मणों और दलितों की विद्वता को एक तराजू में तौलना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था में बदलाव लाने की जरूरत है। मांझी ने कहा कि ब्राह्मण गाली दे, श्राप दे, मारपीट करे, भष्ट्र हो, फिर भी उसे पूजा जाता है, लेकिन दलित कितना भी विद्वान हो उसकी कोई पूजा नहीं करता।
पंडितों को समाज में मिलने वाली इज्जत पर भी मांझी खूब बरसे उन्होंने कहा कि 'पंडित को ही क्यों पूजा के लिए बुलाया जाता है.. हम लोगों को समझना होगा कि जो शक्ति उनके पास है, वही शक्ति हमारे पास भी है। लोग हमें नीच कहकर अछूत मानते हैं और हम ब्राह्मणों को घर पर बुलाकर उनसे पूजा करवाते हैं। यह प्रथा खत्म होनी चाहिए।' मांझी ने ये बातें बेगूसराय के बछवाड़ में चैहरमल पूजा में हिस्सा लेने के बाद लोगों को संबोधित करते हुए कहीं।
बड़े लोग दलितों के बीच फूट डालकर राजपाट चला रहे
इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने दलित और कमजोर वर्ग के लोगों से एकजुट होकर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने की अपील की थी। टाल इलाके के तीनसीमानी गांव में ढाढ़ी विकास मंच के सम्मेलन का उद्घाटन करते समय मांझी ने कहा था कि बड़े लोग दलितों के बीच फूट डालकर राजपाट चला रहे हैं।
ये अंग्रेजों के फार्मूले पर चलकर ही सत्ता का सुख भोग रहे हैं। दलित तथा कमजोर वर्ग के लोग अशिक्षा की वजह से पिछड़े हुए हैं। अपनी पार्टी हम के प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री ने ढाढ़ी समाज को अपने साथ आने का निमंत्रण देते हुए इस समाज को विस चुनाव में टिकट देने तथा विधान परिषद में भेजने का भी आश्वासन दिया था।
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