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    तलाक के लिए पर्याप्त नहीं तीन बार तलाक कहनाः कोर्ट

    By Test1 Test1Edited By:
    Updated: Wed, 27 Jan 2016 11:00 AM (IST)

    मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को परिभाषित करने के लिए जारी संविधान पीठ की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया है कि ट्रिपल तलाक पर तैयार किए गए तलाकनामे से तलाक को वैध नहीं ठहराया जा सकता है।

    मुंबई। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को परिभाषित करने के लिए जारी संविधान पीठ की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया है कि ट्रिपल तलाक पर तैयार किए गए तलाकनामे से तलाक को वैध नहीं ठहराया जा सकता है। अदालत ने कहा कि तीन बार तलाक कहना तलाक के लिए पर्याप्त नहीं है और इसके लिए कुछ शर्तें तय होनी चाहिए जिन्हें पत्नी द्वारा चुनौती दिए जाने के दौरान अदालत में सिद्ध किया जा सके।

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    इस मामले में मजिस्ट्रेट ने मुस्लिम पत्नी की गुजारे भत्ते के लिए धारा 125 के तहत दायर की गयी अर्जी को खारिज कर दिया था जिसे सेशन कोर्ट ने उसे स्वीकारते हुए 1500 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने को आदेश दिया और साथ ही 5000 रुपये मुकदमा के खर्च के रूप में भी देने को कहा। पति ने इस आदेश को बंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि उसने पत्नी को तलाक दे दिया है। उसने उसका सब सामान भी लौटा दिया है। इसलिए मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों का संरक्षण) कानून, 1986 के तहत उक्त अवधि से आगे के लिए वह पत्नी के भरण पोषण का जिम्मेदार नहीं है। सबूत के दौर पर उसने तलाकनामा भी कोर्ट में पेश किया जिसमें गवाहों के हस्ताक्षर थे।