हिंदी का गान, चीनियों के हिंदुस्तानी नाम
संस्कृत की छोटी बहन हिंदी का रस मन में समाने लगे तो सब डूबने लगता है। चीन के विद्वानों को इसकी चीनी की चासनी समान मिठास पसंद आई तो सब बदल गया। अपने नाम तक हिंदुस्तानी रख लिए। चीन के ऐसे 20 विद्वान अब हिंदी का गुणगान करते हैं, बीजिंग सहित चीन के कई शहरों के विश्वविद्यालयों में हिंदी की कक्षाएं चला रहे हैं। चीन
आगरा [अमित दीक्षित]। संस्कृत की छोटी बहन हिंदी का रस मन में समाने लगे तो सब डूबने लगता है। चीन के विद्वानों को इसकी चीनी की चासनी समान मिठास पसंद आई तो सब बदल गया। अपने नाम तक हिंदुस्तानी रख लिए। चीन के ऐसे 20 विद्वान अब हिंदी का गुणगान करते हैं, बीजिंग सहित चीन के कई शहरों के विश्वविद्यालयों में हिंदी की कक्षाएं चला रहे हैं।
चीन के विद्वानों को हिंदी भाषा सिखाने की शुरुआत पांच साल पहले हुई थी। वहां हिंदी को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के प्रो. देवेंद्र शुक्ल बीजिंग के दौरे पर गए थे। 2009 में डॉ. देवेंद्र ने हिंदी की कक्षा से कोशिशें शुरू कीं। शुरू के दो माह तो ऐसा लगता कि शायद यहां से खाली हाथ लौटेंगे। एकाध छात्र को छोड़कर किसी से संपर्क करते तो कोई हिंदी पढ़ने को कोई तैयार ही नहीं होता। वह समझाते तो आखिर में मुस्करा जाते। इसके बाद भी उन्होंने हिंदुस्तानी भाषा के लिए हिम्मत नहीं हारी। रस्सी जैसी कोशिशों से पत्थर पर निशान डाल दिया। किसी तरह पेकिंग विश्वविद्यालय, बीजिंग के आधा दर्जन विद्वान हिंदी पढ़ने को तैयार हो गए। यहीं से समस्या हल हो गई। उन्हें देख अन्य छात्र-छात्राओं में हिंदी को सीखने की ललक बढ़ने लगी। करीब दो वर्ष बीजिंग में हिंदी सिखाने के बाद प्रो. शुक्ला वापस संस्थान लौट आए। जल्द ही इसका असर केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा व दिल्ली में दिखाई पड़ने लगा। चीन से यहां आने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ गई।
चीन के छात्र-छात्राओं ने बदले अपने नाम
प्रो. देवेंद्र शुक्ल ने बताया कि चीन में अधिकांश विद्वान और छात्र-छात्राओं के नाम ई मेल से नाम बदलने को सुझाव मांगे। वहां की डॉक्टर वांग ने आगरा हिंदी संस्थान में पढ़ाई की थी। डॉ. वांग ने नाम बदल कर चेतना रखा। उन्होंने कहा कि चेतना संस्थान में कई बार आ चुकी हैं। वह चीन में हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए काम कर रही हैं। अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा से पढ़ाई करने वाली प्रो. चियांग ने नामकरण प्रो. सुमनिका किया। प्रो. देवेंद्र शुक्ल ने बताया कि 20 विद्वानों व छात्र-छात्राओं ने नाम ही बदलकर हिंदुस्तानियों की तरह कर लिए। सियान विश्वविद्यालय की डॉ. ह्वांग ह्वा ने नाम बदलने की इच्छा जाहिर की। अब उनका नाम डॉ. शांति है। पेकिंग विश्वविद्यालय के डॉ. चांग अब अपना नाम डॉ. विष्णु लिखते हैं। इसके पीछे वजह है कि यह हिंदू धर्म में अवतार माने जाते हैं। एक छात्र चांग छैन को सौम्या शब्द इतना भाया कि उसने अपना नामकरण यही कर लिया। छात्र लिमिन ने भी हिंदी संस्थान से अपने नए नाम पर सुझाव मांगा अब उनका नाम विवेक है।
अच्छा है प्रयास
केंद्रीय हिंदी संस्थान के कुलसचिव प्रो. चंद्रकांत त्रिपाठी का कहना है कि चीन विद्वानों और छात्र-छात्राओं के द्वारा हिंदी को बढ़ावा देने का प्रयास अच्छा है। इसकी जितनी तारीफ की जाए, वह कम है। वर्तमान में संस्थान में चीन की आठ छात्राएं पढ़ रही हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।