मायावती को एक अौर झटका, पूर्व सांसद ब्रजेश पाठक भाजपा में शामिल
भाजपा को ब्रजेश पाठक के आने से उन्नाव क्षेत्र में फायदा होने की उम्मीद है। ब्रजेश पाठक इस क्षेत्र के बड़े नाम हैं और यहां के क्षेत्र की जनता पर उनकी अच्छी पकड़ बताई जा रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। एक दिन पहले तक मायावती की आगरा रैली का जिम्मा देख रहे बसपा नेता ब्रजेश पाठक ने भाजपा का दामन थाम लिया है। बसपा में भ्रष्टाचार के बोलबाला का आरोप जड़ते हुए उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के गठन की शपथ भी उठा ली है।
पार्टी मुख्यालय में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा की उपस्थिति में राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई। उन्होंने कहा कि राज्य को अराजकता से निकालने में केवल भाजपा सक्षम है और राज्य की खातिर ही उन्होंने बसपा छोड़ी है। ब्रजेश पाठक इससे तो इनकार करते हैं कि भाजपा से उनकी बात दो साल पहले से चल रही थी, लेकिन यह भी मानते हैं कि शाह से वह पहले भी मिल चुके हैं और बसपा से उनका मोहभंग काफी वक्त से होने लगा था। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने इस मोहभंग के पीछे के कारण का भी खुलासा किया।
उन्होंने कहा- 'जिस तरह ब्राह्मणों को नजरअंदाज किया जा रहा है उसे हम कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं। 70 से घटकर अब ब्राम्हण उम्मीदवारों की संख्या 32 के आसपास पहुंच गई है। और उसमें भी दस सीटें ऐसी हैं जहां चुनाव जीतना असंभव है। क्या इसी दिन के लिए हमने 2007 के चुनाव में घर घर जाकर ब्राह्मणों को यह समझाया था कि वह मायावती पर भरोसा करें।'
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गौरतलब है कि पाठक दो बार संसद में बसपा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और इस दौरान वह मुखर रहे हैं। जाहिर है कि पाठक यह संकेत देने में जुट गए हैं जिस ब्राह्मण दलित गठजोड़ के सहारे कभी मायावती सत्ता में आई थीं वह गठजोड़ टूट चुका है और अभी बसपा से कई और नेता दामन छुड़ाने वाले हैं। बसपा में अपने पुराने संबंधों के सहारे शायद पाठक भी इस काम को अंजाम दें।
भाजपा की ओर से पहले से यह संकेत दिया जाता रहा है कि विभिन्न दलों के पांच दर्जन से अधिक नेता पार्टी के संपर्क में हैं और इसमें सबसे ज्यादा संख्या बसपा के नेताओं की है। एक दिन पहले तक आगरा रैली में मायावती का कामकाज देख रहे ब्रजेश ने रातो रात हुए मोहभंग के सवाल का जवाब देते हुए कहा- 'जब तक मैं बसपा मे था तो वहां समर्पित कार्यकर्ता के रूप मे काम कर रहा था। लेकिन यह उहापोह काफी लंबे समय से था कि उत्तर प्रदेश को कौन सही रास्ते पर ले जा सकता है। सोमवार की सुबह तक उन्होंने फैसला कर लिया था और पार्टी की सदस्यता लेने से पहले तक इसकी जानकारी उन्होंने अपनी पत्नी को भी नहीं दी थी।'
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भाजपा से उन्होंने खुद ही संपर्क साधा था और पहले भी वह शाह से मिल चुके थे। पाठक यह तो मानते हैं कि रविवार को आगरा में हुई मायावती की रैली प्रभावी थी लेकिन दूसरे ही पल यह दावा करने से भी नहीं चूकते हैं कि उसमें सिर्फ एक समुदाय विशेष भर के लोग थे। लंबे वक्त तक बसपा के साथ रहे पाठक ने बसपा के इस भरोसे को भी भ्रम बताया कि अल्पसंख्यक समुदाय उन्हें वोट देगा। उनका मानना है कि सपा ने जिस तरह अल्पसंख्यकों को अपने संगठन में स्थान दिया है उसके आधार पर किसी भी स्थिति में 50 फीसद अल्पसंख्यक वोट सपा को ही मिलेगा।
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