जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए ब्रिटिश पीएम माफी मांगें: थरूर
ब्रिटिश राज के दौरान हुए गलत कार्यों, ज्यादतियों पर गहन चर्चा करते हुए शशि थरूर ने पुस्तक लिखी है 'न इरा ऑफ डार्कनेस:दि ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया'।
नई दिल्ली, प्रेट्र। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद शशि थरूर का कहना है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री को जलियांवाला बाग नरसंहार के लिए माफी मांगनी चाहिए। ऐसा करने से ही वे बातें भुलाई जा सकती हैं जो ब्रिटिश शासन में गलत हुई थीं और जिन्हें स्वीकारा नहीं गया।
ब्रिटिश राज के दौरान हुए गलत कार्यों, ज्यादतियों पर गहन चर्चा करते हुए शशि थरूर ने पुस्तक लिखी है 'न इरा ऑफ डार्कनेस:दि ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया'। इसमें कहा गया है कि तब भारत को लगभग तहस-नहस कर दिया गया था।
थरूर ने ब्रिटिश काल के गलत कार्याें के प्रायश्चित का मुद्दा पिछले वर्ष ऑक्सफोर्ड विश्र्वविद्यालय में अपने संबोधन के दौरान उठाया था जिसकी खूब प्रशंसा हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए टिप्पणी की थी कि सही स्थान पर सही बात कही गई।
पुस्तक में थरूर का कहना है कि गलत कार्यो का परिमाण तय नहीं किया जा सकता। प्रायश्चित को आर्थिक मदद का रूप देने से बेहतर है माफी मांगी जाए। सांसद ने दो उदाहरण पेश करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री से उनसे सबक लेने को कहा। जर्मन नेता विली ब्रांट ने नाजी नरसंहार के लिए माफी मांगी थी। हाल में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ने कामागाटामारू घटना के लिए क्षमायाचना की।
दोनों घटनाओं के लिए इन नेताओं का सीधे कोई सरोकार नहीं था। उन्होंने जो उदाहरण पेश किया उसका भारतीय संदर्भ में भी अनुकरण होना चाहिए। पुस्तक में कहा गया कि डेविड कैमरून ने 2013 में इस नरसंहार को शर्मनाक घटना बताया लेकिन यह क्षमायाचना नहीं थी। 1997 में क्वीन एलिजाबेथ और ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग ने जलियांवाला बाग का दौरा किया लेकिन उन्होंने विजिटर्स बुक में केवल हस्ताक्षर किए , प्रायश्चित का एक शब्द भी दर्ज नहीं किया गया।
जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को जनरल डायर ने एक मीटिंग के लिए जुटे बीस हजार लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। फायरिंग में एक हजार मासूम लोगों कीे मौत हुई तथा 1100 से अधिक घायल हुए थे।
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