नोटबंदी से तबाह मजदूरों के लिए बीएमएस ने मांगा पैकेज
बीएमएस की केंद्रीय कार्यकारिणी की पुणे में हुई 137वीं बैठक में इस संबंध में आठ सूत्री प्रस्ताव पारित किया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली।संघ से जुड़े श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने नोटबंदी के कुप्रभावों से श्रमिकों को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की केंद्र सरकार से मांग की है। बीएमएस के अनुसार 'भारत को स्मार्ट सिटी से ज्यादा जरूरत स्मार्ट गांवों की है। सरकार को जबरदस्ती डिजिटाइजेशन लागू करने के बजाय लोगों को इसके लिए राजी करना चाहिए।'
बीएमएस की केंद्रीय कार्यकारिणी की पुणे में हुई 137वीं बैठक में इस संबंध में आठ सूत्री प्रस्ताव पारित किया गया है। इसमें जहां एक ओर काले धन, आतंकवाद, नक्सलवाद, तस्करी, नकली नोटों आदि के खात्मे तथा राजस्व संग्रह में बढ़ोतरी के लिए नोटबंदी के सरकार के कदम की सराहना की गई है। वहीं दूसरी ओर इससे मजदूर वर्ग को हो रही दिक्कतों का जिक्र भी किया गया है।
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वक्तव्य में कहा गया है कि देश के श्रमिकों ने नोटबंदी में तहेदिल से सरकार का सहयोग किया है। इस दौरान बैंकों और टकसाल कर्मियों ने तनाव के बावजूद रात-दिन काम किया। किसी दूसरे देश में ऐसा होना संभव नहीं था।
लेकिन, इसके बावजूद नोटबंदी को जिस तरह लागू किया गया उससे इसके अनेक तात्कालिक दुष्प्रभाव सामने आए हैं। कुप्रबंध के कारण लोगों को नकदी की भारी कमी का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप बाजार मंदी का शिकार हो गया है और छंटनी के कारण लाखों मजदूरों की नौकरियां चली गई हैं। फैक्टि्रयां बंद होने से मजदूरों को वापस गांव जाना पड़ा है।
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लघु व मझोले उद्योगों तथा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर को भी दुर्दिन देखने पड़ रहे हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा इसका सही आकलन करने की जरूरत है। लेकिन जिस तरह केंद्र का खजाना भरा है, उससे अब उसे श्रमिकों के कल्याण और सामाजिक सुरक्षा के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए।
सोशल सेक्टर में श्रमिक, गरीबी रेखा से नीचे तथा सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े लोग, निम्न मध्यम वर्ग के लोग, किसान, सूक्ष्म व लघु उद्योग सभी आते हैं। नोटबंदी का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव इन्हीं वर्गो पर पड़ा है।
इसलिए सरकार की नैतिक जिम्मेदार बनती है कि वह तत्काल कदम उठाए। बीएमएस ने श्रमिकों के लिए सामूहिक कोष की स्थापना करने के अलावा मजदूरों के न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए बजट में पर्याप्त धन का आवंटन करने, आयकर छूट की सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रुपये करने तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है।
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