'गलवन की घटना के पीछे है बीजिंग का दिमाग, ये विवाद बढ़ेगा नहीं, लेकिन जल्द सुलझेगा भी नहीं'
विशेषज्ञ मानते हैं कि गलवन वैली में शुरू हुए विवाद के पीछे एकमात्र वजह चीन है। विवाद सुलझाने के लिए उसको पीछे हटना होगा।
नई दिल्ली। लद्दाख की गलवान वैली में 15-16 जून की रात घटी हिंसक घटना एक बड़ी परेशानी का सबब बनती जा रही है। चीन की तरफ से खड़े किए गए इस विवाद को अब वो और वहां की मीडिया पूरी तरह से हवा देने में लगी है। इस घटना के बाद चीन की तरफ से आया बयान भी इस बात के संकेत दे रहा है कि ये मुद्दा जल्द सुलटने वाला नहीं है। घटना के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने गलवन वैली के इलाके को अपना क्षेत्र बताते हुए कहा था कि भारतीय सेना के जवानों ने वहां पर हिंसा शुरू की थी। चीन की तरफ से आ रहे बयान न सिर्फ बेबुनियाद हैं, बल्कि गैरवाजिब भी हैं। हालांकि, भारत की तरफ से इस मसले को सुलझाने के लिए पूरी सावधानी और संयम बरता जा रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया है कि देश की संप्रभुता और अखंडता के साथ समझौता नहीं किया जाएगा और जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। कूटनीतिक, राजनीतिक और रणनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने गलवन वैली के तौर पर एक नए विवाद को जन्म दिया है, जो जल्द सुलझने वाला नहीं है।
इस पूरे मसले पर पूर्व डिप्लोमैट, पूर्व सांसद और नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजरी बोर्ड में बतौर मेंबर रह चुके एचके दुआ से बात की। उन्होंने कहा कि इस समस्या का हल तभी संभव है, जब चीन की सेनाएं सीमा पर यथास्थिति कायम करेंगी। 6 जून को दोनों देशों के बीच सैन्य अधिकारी स्तर की बातचीत के दौरान जो सहमति बनी थी उसको लागू किया जाए। चीन इसको अपना हिस्सा कहना बंद करे और पीछे अपनी सीमा में चला जाए। इसके बाद ही किसी तरह की बातचीत शुरू हो। उन्होंने इस बातचीत के दौरान ये भी माना कि चीन ने गलवन को लेकर एक विवाद खड़ा कर दिया है। हालांकि, उन्होंने ये भी माना है कि ये लड़ाई बढ़ेगी नहीं, लेकिन इसका हल भी जल्द नहीं निकलेगा। इसके बाद भी कूटनीतिक स्तर की वार्ता को जारी रखना जरूरी है।
उन्होंने इस बातचीत के दौरान ये भी कहा कि ये गलवन में जो कुछ भी घटा वो तुरंत गुस्से में आकर उठाया गया कदम नहीं था, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था, जिसका केंद्र बीजिंग है। उनके मुताबिक, बिना बीजिंग की सलाह, आदेश और उनके समर्थन के फौज इस तरह का कोई कदम नहीं उठा सकती है। यहां पर उन्होंने यूएन में राजदूत रह चुकी निरुपमा राव का वो बयान भी कोट किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि इस कार्रवाई के पीछे वो बड़ा अधिकारी है, जो पहले तिब्बत का गवर्नर हुआ करता था। अब ये अधिकारी बीजिंग में सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का सदस्य है, जिसके चीफ खुद राष्ट्रपति शी चिनफिंग हैं।
दुआ ने चीन की तरफ से आने वाले उस बयान को भी खारिज कर दिया कि गलवन चीन का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि ये चीन की तरफ से गलत बयानबाजी की जा रही है। उनके मुताबिक, इस घटना के बाद दोनों देशों की तरफ से बातचीत की कवायद शुरू भी हो चुकी है। मुमकिन है दोबारा सैन्य स्तर के उच्च अधिकारियों की बातचीत फिर हो सकेगी। उनका कहना था कि इस विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत के दरवाजे अभी बंद नहीं हुए हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालात दोनों देशों में लड़ाई के हित में नहीं हैं। दोनों देशों की आर्थिक हालत पहले से खराब हुई है और दोनों देश कोरोना महामारी से पीडि़त हैं।
आपको बता दें कि समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने धमकी दी है कि पाकिस्तान और नेपाल की तरफ से भी सैन्य दबाव का सामना करना पड़ सकता है। इस बाबत पूछे गए सवाल पर दुआ का कहना था कि पाकिस्तान शुरू से ही चीन के हाथों की कठपुतली रहा है। उसको चीन का पूरा साथ मिला हुआ है। वहीं, नेपाल को भी अब चीन का साथ मिल रहा है, लेकिन इन दोनों के लिए वो गलवन वैली में नहीं गया है। गलवन पूरी तरह से द्विपक्षीय मुद्दा है। इसलिए इससे नेपाल और पाकिस्तान का या उससे खतरे का कोई मतलब नहीं है। वहीं, नेपाल की बात करें तो वो इस स्थिति में न तो पहले ही था न अब है कि भारत को सीमा पर चुनौती दे सके। इसलिए उससे डरने की जरूरत नहीं है। जहां तक दबाव की बात है तो गलवन की घटना के बाद जिस तरह से भारत में लोगों ने चीन के उत्पादों का बहिष्कार शुरू कर दिया है।
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