बदायूं कांड: खुद के बुने जाल में उलझ गई अखिलेश सरकार
बेशक यह रूह कंपा देने वाली क्रूर नर-पैशाचिक करतूत थी, लेकिन सूबे की अखिलेश सरकार ने इसे लेकर बेवजह अपने इर्द-गिर्द जाल बुन लिया। सियासी जाल में उलझी सरकार अब बाहर निकलने की जितनी कोशिश कर रही है, उतनी ही उलझती जा रही है।
कटरा सआदतगंज [बदायूं], [सद्गुरु शरण]। बेशक यह रूह कंपा देने वाली क्रूर नर-पैशाचिक करतूत थी, लेकिन सूबे की अखिलेश सरकार ने इसे लेकर बेवजह अपने इर्द-गिर्द जाल बुन लिया। सियासी जाल में उलझी सरकार अब बाहर निकलने की जितनी कोशिश कर रही है, उतनी ही उलझती जा रही है। बदायूं के सांसद धर्मेद्र यादव छठवें दिन, तो डीजीपी आठवें दिन इस गांव में पहुंचे। मुख्यमंत्री अखलेश यादव ने अब तक रुख नहीं किया। ऐसे में सात में पांच आरोपियों को जेल भेजकर सीबीआइ जांच की भी संस्तुति कर चुकी अखिलेश सरकार के बारे में आरोपियों के प्रति हमदर्दी की आम धारणा यूं ही नहीं बन रही। गांव से करीब एक किमी दूर बह रही मोक्षदायी गंगा स्तब्ध है। दबंगई और जरायम गंगा की इस कटरी का जगजाहिर चरित्र है। सदियों से पवित्र नदी ऐसी अनगिनत वारदातों की साक्षी रही है, लेकिन यह घटना! जरायम के इतिहास की किताब खंगाल डालिए, दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया कांड को भी याद कर लीजिए, सत्ता की दबंगई और पुलिस के पतन की ऐसी घृणास्पद कॉकटेल ढूंढे नहीं मिलेगी। क्षेत्रीय बसपा विधायक सिनोद शाक्य बताते हैं कि सपा सरकार बनने के बाद गरीब-दलित परिवारों की बहू-बेटियों पर ऐसे जुल्म यहां आम बात है। जब मन करे, बेखौफ घर में घुसकर किसी भी लड़की को उठा ले जाना तथा उसकी जिंदगी बर्बाद करके चार-छह दिन बाद वापस छोड़ जाने की दर्जनों घटनाएं हो चुकी हैं। चूंकि पुलिस खुद इन अपराधों में शामिल रहती है, इसलिए असहाय अभिभावक सिर्फ यह कोशिश करते रहते हैं कि चार-छह दिन बाद ही सही, लड़की वापस आ जाए, ताकि उनकी इज्जत बची रहे। जीवनलाल-सोहनलाल पहले अभिभावक हैं, जिन्होंने अपनी बेटियों के लिए न्याय की जंग लड़ने का हौसला दिखाया। इसके लिए उन्होंने सरकारी मुआवजा भी ठुकरा दिया। हत्यारे दुष्कर्मियों की क्रूरता की शिकार बनीं नाबालिग चचेरी बहनों में एक की मां रोते हुए कहती हैं कि जिस तरह हमारी बच्चियां पेड़ पर लटकाई गई, हम उसी तरह इन गुंडों को भी लटका देखना चाहते हैं। तभी हमारी लड़ाई पूरी होगी। एक लड़की के पिता सोहनलाल बताते हैं कि घटना वाली रात हम बच्चियों को उठा लिए जाने की शिकायत करने पुलिस चौकी पहुंचे तो वहां मौजूद सिपाही ने कहा कि भाग जाओ। मुझे सोने दो। लड़कियां मिल जाएंगी। कुछ घंटे बाद जब दोबारा चौकी गए तो उसी सिपाही ने गालियां देते हुए कहा कि बाग में जाकर देखो, लटका तो नहीं दीं। वे लोग बाग में पहुंचे तो दोनों लड़कियों के शव सचमुच पेड़ पर झूलते मिले। इतनी हृदयविदारक वारदात में कार्रवाई को लेकर संजीदगी दिखाने के बजाय सत्तापक्ष का तंत्र शुरू में इसे ऑनर किलिंग साबित करने में जुटा रहा। बहरहाल, मीडिया और विपक्षी राजनीतिक दलों का दबाव बढ़ने पर अभियुक्तों की धरपकड़ की गई। मुख्य अभियुक्त को खुद पीड़ित परिवार ने पकड़कर पुलिस के हवाले किया। इसके बावजूद पुलिस ने रिमांड पर लेने के बजाय गिरफ्तार अभियुक्तों को आनन-फानन जेल भेज दिया। इस वजह से दो आरोपी अब भी अज्ञात बताए जा रहे हैं। मौके पर सबसे पहले राहुल गांधी पहुंचे। उसके बाद मायावती, मीरा कुमार, राम विलास पासवान, भाजपा सांसद धर्मेद्र कश्यप तथा कई अन्य बड़े नेता यहां आ चुके हैं। कार्रवाई की दृष्टि से देखें तो प्रदेश सरकार ने लगभग हर संभव एवं जरूरी कदम उठाया, लेकिन शुरुआती संकोच के कारण पीड़ित परिवार सहित इस पूरी कटरी की धारणा है कि अखिलेश सरकार ने जो कुछ किया, राजनीतिक मजबूरी में, बेमन से। मुमकिन है, यह धारणा सही न हो, लेकिन इस धारणा का बीज डालने तथा इसके अंकुर को खाद-पानी देने के लिए जाने-अनजाने अखिलेश सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी का तंत्र ही जिम्मेदार है। सरकार ने कार्रवाई करते हुए भी हर कदम पर जो संकोच दर्शाया, उससे वह खुद कठघरे में खड़ी हो गई। बहुत गहरे पैठ चुकी यह धारणा तोड़ने में सपा सरकार को अब बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे।